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बाल विवाह

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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आज लालती का विवाह हुए २ महीने बीत चुके थे। उन दिनों विवाह के बाद गौने का रिवाज था। लालती का विवाह १० वर्ष की उम्र में कर दिया गया था,दूल्हे की उम्र १२ वर्ष की थी। लंबे घूँघट की आड़ में रात भर जागकर विवाह मंडप में बैठना बहुत मुश्किल होता था। छोटी-सी उम्र अपने- आप कहाँ संभल कर बैठ सकती थी,नाईन दुल्हन को कस कर पकड़ कर बैठी थी। दुल्हन कुछ जागते,कुछ ऊँघते किसी प्रकार शादी की सारी रस्में निभा रही थीं। विवाह पूर्ण होते ही दोनों बच्चों को सुला दिया गया। जिन बच्चों की उम्र गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की थी,उन्हें पति-पत्नी बना कर सब ख़ुश हुए।
५ वर्ष बाद की गौने की साईत रखी गई थी। इस बीच दोनों बच्चे विद्यालय में पढ़ रहे थे। कुछ महीनों के बाद दुल्हन के पिताजी दुल्हन की ससुराल सबसे मिलने गए थे। उन दिनों फ़ोन तो था नहीं,कि हाल-चाल लिया जा सके। नया-नया रिश्ता था,सो पिताजी को चिट्ठी लिखकर भी जबाब का इंतज़ार करना ठीक नहीं लगा। घर पर सबको बताकर साइकिल उठाई और चल दिए बेटी की ससुराल।रास्ते में दुकान से मिठाई भी ख़रीद ली,बेटी के ससुराल ख़ाली हाथ कैसे जाते भला!! सबसे मिलने की उत्सुकता लिए बहुत ख़ुश हो रहे थे।
बेटी के गाँव पहुँच कर साइकिल से उतर कर पैदल ही चलने लगे। कुछ ही दूर पर घर दिखाई दे रहा था। नज़दीक पहुँचते हीं उन्हें ज़ोर-जोर से रोने की अवाज सुनाईं दी,पिताजी लगभग दौड़ते हुए उनके घर पहुँचे। वहाँ जाकर पता चला कि दूल्हे राजा विद्यालय से घर लौट रहे थे,तो रास्ते में ख़ून की उल्टी होने लगी। किसी तरह घर आए। तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाया गया,परंतु बचाया नहीं जा सका। पिताजी बेहोश होकर गिर गए। क्या सोचकर गए थे,क्या हो गया! घर कैसे जाएँ,बेटी का सामना कैसे करें,कुछ समझ नहीं पा रहे थे। जाना तो था,किसी तरह हिम्मत करके दुल्हे के माता-पिता से मिले। आज उन्हें पता चला कि दूल्हे को बीमारी पहले से हीं थी। इकलौते बेटे की शादी का सपना और बहू को घर लाने की लालसा के कारण उन्होंने लालती के पिताजी से यह बात छुपाई थी। अब तो सब कुछ ख़त्म हो चुका था,कुछ नहीं किया जा सकता था।
लालती के पिताजी घर आए,रोते हुए बेटी को गले लगा लिया। लालती कुछ समझ न पाई,प्यार से पापा के गले लग गई। घर के सभी लोगों को रोता हुआ देख ख़ुद भी रोने लगी। लालती के पिताजी ने लालती को पढ़ाया-लिखाया और शिक्षिका बनाया।अब लालती बड़ी हो गई थी,वह सब समझने लगी थीं। मुँह से तो कुछ न कहती,परंतु उसकी आँखें बहुत कुछ कह जातीं। कुछ वर्ष पश्चात एक भले परिवार से लालती के लिए रिश्ता आया,वे लोग लालती की पिछली ज़िंदगी के बारे में सब जानते थे। शुरू में लालती इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थीं,पर पिताजी और परिवार के अन्य सदस्यों के समझाने-बुझाने के बाद किसी तरह राज़ी हुईं। ख़ैर, अंत भला तो सब भला। लालती के नए परिवार के सब लोग पढ़े-लिखे और समझदार थे। उन्होंने लालती को बहुत प्यार से अपना लिया था। लालती का बाक़ी जीवन हँसी-ख़ुशी अपने परिवार के साथ बीता।
सोचती हूँ लालती के साथ तो पिताजी थे, जिन्होंने उन्हें पढ़ाया-लिखाया,क़ाबिल बनाया,आगे चलकर उनके साथ सब अच्छा हुआ,परंतु उन लड़कियों के बारे में सोचकर काँप जाती हूँ,जिन्हें परिवार का साथ नहीं मिलता और पूरी उम्र वैधव्य में बिताना होता है। आज भी बहुत से लोग बेटियों को बोझ समझते हैं,जल्द शादी करवा के उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं।
वास्तव में लड़कियों को पढ़ा-लिखाकर अपना भविष्य सँवारने का पूरा मौक़ा मिलना चाहिए,तभी स्वस्थ व सुदृढ़ समाज का निर्माण किया जा सकता है।

परिचय-डॉ. आशा वीरेंद्र कुमार मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘आस’ है। १९६२ में २७ फरवरी को वाराणसी में जन्म हुआ है। वर्तमान में आपका स्थाई निवास मुम्बई (महाराष्ट्र)में है। हिंदी,मराठी, अंग्रेज़ी भाषा की जानकार डॉ. मिश्रा ने एम.ए., एम.एड. सहित पीएच.-डी.(शिक्षा)की शिक्षा हासिल की है। आप सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत बालिका, महिला शिक्षण,स्वास्थ्य शिविर के आयोजन में सक्रियता से कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,कविता एवं लेख है। कई समाचार पत्र में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। सम्मान-पुरस्कार में आपके खाते में राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१२),महापौर पुरस्कार(२००५-बृहन्मुम्बई महानगर पालिका) सहित शिक्षण क्षेत्र में निबंध,वक्तृत्व, गायन,वाद-विवाद आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कार दर्ज हैं। ‘आस’ की विशेष उपलब्धि-पाठ्य पुस्तक मंडल बालभारती (पुणे) महाराष्ट्र में अभ्यास क्रम सदस्य होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों से लोगों को अवगत कराना,वर्तमान विषयों की जानकारी देना,कल्पना शक्ति का विकास करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद जी हैं।
प्रेरणापुंज-स्वप्रेरित हैं,तो विशेषज्ञता-शोध कार्य की है। डॉ. मिश्रा का जीवन लक्ष्य-लोगों को सही कार्य करने के लिए प्रेरित करना,महिला शिक्षण पर विशेष बल,ज्ञानवर्धक जानकारियों का प्रसार व जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा सहज,सरल व अपनत्व से भरी हुई भाषा है।’