डॉ. जमील अहमद ‘शाद’
मेरठ(उत्तरप्रदेश)
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सौ-सौ मस्तक झुके हैं नमन के लिए।
मिट गये हैं जो अपने वतन के लिए।
ऐसे वीरों को हम भूल सकते नहीं,
रक्त सींचा जिन्होंने चमन के लिए॥
अपनी आज़ादियां इतनी सस्ती नहीं,
ख़ूं जहां न बहा,कोई बस्ती नहीं।
जलियां वाला भी हम भूल सकते नहीं,
कितनी लाशें पड़ी थी कफ़न के लिए॥
सौ-सौ मस्तक झुके हैं…
धरती माता की रखना तुम्हें लाज है,
मरना मिटना ही अपना धरम काज है।
पीठ पर ही न खाना कभी गोलियां,
ख़त में गौरी ने लिखा सजन के लिए॥
सौ-सौ मस्तक झुके हैं…
दु:ख उठाकर ही इंसान होगा सुखी,
ग़म उठाकर ही हमको मिलेगी ख़ुशी।
‘शाद’ क़ुदरत का एक भी ही दस्तूर है,
ख़ार भी लाज़मी है सुमन के लिए॥
सौ-सौ मस्तक झुके हैं…