जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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संबंधी या मित्र मंडली यह दायित्व निभाना होगा।
प्राण पखेरू उड़ जायें जब अच्छी तरह विदा कर देना॥
सेवा खूब करी अपनों की जब तक साँसें रही देह में,
जीवनभर ही करी चाकरी खूब लुटाया माल नेह में।
तोते का संदेसा मिलकर मैना को समझाना होगा,
जीवन शेष चैन से जीना उसको नहीं जुदा कर देना॥
खूब तपाया इस काया को पीतल नहीं रहा मन मेरा,
अंगारों के साथ रहा हूँ शीतल नहीं रहा मन मेरा।
यादें ताजा रहें जगत में ऐसा मंच सजाना होगा,
कविताओं के प्रकाशन में अपना फर्ज अदा कर देना॥
सारी रचना लोक समर्पित जो मैंने इस जग से पायीं,
जैसे घने वृक्ष की शाखा धरती पर छोड़ें परछायीं।
बेसक देह जले मेरी पर मेरा लिखा बचाना होगा,
भटके हुए पिपासित को इतना ध्यान सदा कर देना॥
कविता मेरी अमर बेल है कर मत देना भूल भुलावा,
बच्चों और काव्य मित्रों पर इतना तो बनता है दावा।
एक अमर सैनिक के जैसा मुझको वस्त्र उड़ाना होगा,
‘हलधर’ को कवि रहने देना मुझको नहीं खुदा कर देना॥