संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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समर्पण शब्द आसान
अर्थ तर्पण-सा तू जान,
मानो स्वयं को हो भूला
बस नृत्य मीरा-सा मान।
प्रश्न-उत्तर का जोर नहीं
वाद-संवाद थोर नहीं,
पुष्प चढ़े शिव-शव जैसे
मौन पुष्प स्वयं-सा जान।
न गुरु संज्ञा मान मिले
न शिष्य-सा ज्ञान मिले,
खुद से खुद न जान कर
सर्वनाम स्वयं-सा जान।
जल समाहित हो जल में
विज्ञान वाष्प वर्षा ज्ञान,
जटा शिव गंगा बैठी शिव चढ़ती
गंगाधार स्वयं-सा जान।
अर्पण हो,समर्पण हो,
न सामने कोई दर्पण हो।
लाभ-हानि से दूर कहीं,
अक स्वयं शून्य-सा जान॥