शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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आज सोई हुई
बहरी,
गूँगी है
बस्ती में,
खूब
शोर हुआ।
असमंजस में,
गूँगे
बहरे
पूछने लगे-
भाई,
क्या हुआ ?
क्या हुआ!
बताओ तो सही कोई…
‘क्या हुआ ?’
कुछ नहीं हुआ
भाई!
कुछ नहीं हुआ…
एक झोंका था
‘पुरवाई’
इधर से आया
उधर ‘पश्चिम’ में चला गया।
झोंकें में,
कहाँ था ?
इतना रंग
जो उठा-पटक कर सके,
ले उड़े
जले काग़ज़ों के,
टुकड़े अपने संग।
आज,
हुआ तो हुआ
बहरी,
गूँगी
बस्ती में,
बस!
खूब,
शोर हुआ॥