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नवरंग बिखेरता ‘कंद-पुष्प’

विजयसिंह चौहान
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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समीक्षा…

‘कन्द-पुष्प’ अपने चटख रंग और सुन्दरता के लिए जाना जाता है, जो सामान्यतः पहाड़ीपन में सहजता से पनपता, पल्लवित होता है, मगर यहां बात कर रहा हूँ एकल काव्य संग्रह  ‘कन्द-पुष्प’ के बारे में। कविता के पट खोलते ही अशोक के वृक्ष-सा घनापन, सुकूनदायी छाँव और तटस्थता नजर आती है। सम-सामयिक, सांसारिक घटना हो या स्त्री स्वर की बात, गाँव की छाँव और मीठी ठंड से न केवल पर्यावरण, बल्कि आत्मा तक प्रसन्न हो जाती है।
डॉ. अशोक (पटना, बिहार) की कलम से साहित्य का झरना अनवरत बहता है और समय, देश, काल, परिस्थितियों से टकराते हुए विशाल नदी साहित्य सागर में समा जाती है।
आलेख, लघुकथा और काव्य के माध्यम से आपकी साहित्य यात्रा अनवरत जारी है। विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर और प्रशासनिक अनुभव के दर्शन आपके शब्दों में नजर आते हैं। संग्रह में समाहित ६४ पृष्ठों में संवेदना, भाव, अभिव्यक्ति और प्रहारक क्षमता लिए काव्य पंक्तियाँ हमें झकझोरती है, सोचने को मजबूर करती है। ‘कोरोना’ काल की बात हो, या स्त्री विमर्श में वैचारिक मंथन, गाँव की मीठी छाँव हो या परिवारवाद पर बात। सलीके से अपनी बात परोसती हुई काव्य पंक्तियाँ  अपनी विशिष्ठ छाप छोड़ती है। ‘वक्त जाया न हो, स्वच्छता क्यों जरुरी है’ जैसी रचना सामाजिक दिव्य सन्देश की खुशबू बिखेरती है। चटख रंग में खिलते ‘कन्द-पुष्प’ का कलेवर मोहक है। यह संग्रह सामाजिक संचार मंचों पर भी उपलब्ध है। स्पष्ट शब्द और मनभावन मुद्रण वाली यह पुस्तक सभी वर्ग के लिए पठनीय है।

परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० और जन्मस्थान इन्दौर(मध्यप्रदेश) हैl वर्तमान में इन्दौर में ही बसे हुए हैंl इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की,तथा वकालात में कार्यक्षेत्र इन्दौर ही हैl श्री चौहान सामाजिक क्षेत्र में गतिविधियों में सक्रिय हैं,तो स्वतंत्र लेखन,सामाजिक जागरूकता,तथा संस्थाओं-वकालात के माध्यम से सेवा भी करते हैंl लेखन में आपकी विधा-काव्य,व्यंग्य,लघुकथा और लेख हैl आपकी उपलब्धि यही है कि,उच्च न्यायालय(इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता जारी हैl