रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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माँ का आँचल परचम बन, नील गगन में लहराया है
बादल बन कर ममता का, धरणी पर ही बरसाया है।
वीर शिवाजी के वीरत्व में,
था माँ का ही योगदान
नेता सुभाष की बाँहों में,
था माँ का ही शक्तिदान।
सत्य-अहिंसा के बल पर, जिसने, फिरंगी को ललकारा
माँ का वही लाल था बापू, ‘राष्ट्रपिता’ था कहलाया।
नहीं संघर्ष से घबराती,
माँ ही ऐसी सत् नारी है
युग-युग से तभी प्रभु,
बने यहाँ अवतारी है।
सारे संबध बिखर रहे,
पर माँ का संबध छाया है
माँ का आँचल परचम बन, नील गगन में लहराया है।
अनुसुईया, कुन्ती व द्रौपदी, की कहानी तुमने है जानी
ममता की शक्ति क्या है,
सारे जगत ने है पहचानी।
कंलक लगाया इन पर सबने, पर इसने हार न मानी
इसकी ही खातिर बना कर्ण, इस जग का महादानी।
प्रभु को शिशु बनाकर अनु ने, माँ का दायित्व निभाया
द्रौपदी भी शिला बनी पर, उसने माँ का मान बढ़ाया।
प्रभु नहीं आ पाते हर घर, इसलिए ही माँ को बिठाया है
माँ का आँचल नील गगन में, परचम बन कर लहराया है।
अनगिनत आशीषों से हमने, भी यह आजादी पाई है
एक से एक वीर बाँकुरों ने,
इस पर जान गंवाई है।
भारत माँ ने माँ को पाला,
देश हमारा बना महान
युग-युग से गाता रहा,
माँ की महिमा का गुणगान।
आस्था का दीप जलाया,
माँ ने ही बेटे के मन में
तभी बने विवेकानन्द फूल, खिले धर्म उपवन में।
जाति-पाँति का भेद भी देखो, इसी माँ ने मिटाया है।
माँ का आँचल परचम बन, नील गगन में लहराया है॥