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बचपन की यादें

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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बड़ी सुहानी थी वो बचपन की यादें,
दिल को महकाती थी वो बचपन की यादें
खेलना-कूदना होता था बचपन में,
बड़ी ही हसीन होती थी वो बचपन की यादें।

चिड़िया की तरह उछलना- कूदना होता था,
ठुमक-ठुमक कर चलना होता था
रुठना-लड़ना; फिर मनाना होता था,
बचपन तो बड़ा ही हसीन होता था।

गुड्डे-गुड़ियों का खेल अब कहाँ मिलता है,
छुपम-छुपाई का खेल अब कहाँ मिलता है
वो पेड़ों पर चढ़ना-गिरना चोट लगना,
मिल-जुलकर खेलना अब कहाँ मिलता है।

बचपन की उन यादों से महक उठा तन-मन,
काश! फिर से लौट कर आ जाएं बचपन
सुहाना व रंगीन था वो बचपन,
काश! फिर से लौट कर आ जाएं बचपन।

बस्ता लेकर स्कूल जाना,
मास्टर जी की छड़ी खाना
बड़ा-सा इमली का पेड़,
कटारी के बहाने छिप जाना।

जब-जब याद आएं बचपन के दिन,
मन को महकाएं वो बचपन के दिन।
बड़ी सुहानी हैं बचपन की यादें,
दिल को महकाती हैं बचपन की यादें॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”