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यमराज और मैं…

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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नींद खुली तो किसी को सामने पाया, मैंने कहा-“पहचाना नहीं ?”

उसने कहा-“मैं यमरा-ज हूँ।”
यह सुनकर मैं काँप गया और यमराज जी की नीयत भांप गया। मैंने कहा-“बताइए, मैं आपकी क्या सेवा करूं ?” उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया-“जनाब, सेवा तो मैं आपकी करने आया हूँ। इस लोक में आप बहुत सालों से रह रहे हैं। अब इस लोक में आपका समय समाप्त हो गया है, अब आपको इस लोक से विदा होकर अपने वास्तविक लोक में जाना होगा।”
मैंने कहा-“यमराज जी, क्षमा चाहूंगा कि, केवल मुझे लेने के लिए आपको स्वर्ग लोक से धरती पर आना पड़ा। अब आप इस लोक में आ ही गए हैं तो बहुत सावधानी रखें। इस लोक में चारों तरफ वातावरण प्रदूषित है और अपराध चरम सीमा पर है। हत्या, लूटपाट और बलात्कार ये आम बात है।यदि आप अपना परिचय किसी को बताएंगे, तो शायद कोई आपका अपहरण करके स्वर्ग में भगवान विष्णु से आपकी रिहाई के बदले फिरौती मांगेगा।
धरती पर आपको बहुत संभल कर चलना होगा। चारों तरफ खतरा ही खतरा है। हम लोग स्थानीय होने के बावजूद भी अपने को नहीं बचा पाते हैं, फिर आप तो दूसरे लोक से आए हैं। आपको तो कोई भी आसानी से अपना शिकार बना सकता है। इसलिए, आपसे निवेदन है कि, आप मुझे छोड़िए और स्वयं का ध्यान रखिए, तथा तुरंत ही अपने लोक को प्रस्थान कीजिए।
आजकल डिजिटल युग आ गया है यमराज जी। अब तो आपको पृथ्वी पर आने की जरूरत ही नहीं। वैसे भी, आप आत्मा ले जाते हैं, शरीर नहीं। इसलिए, आप भी इंटरनेट का उपयोग कीजिए और उसके द्वारा आत्मा को अपने पास मंगा लीजिए। ना आपको व्यर्थ ही बार-बार धरती पर आना पड़ेगा, बल्कि स्वर्ग में सुरक्षित रहकर भी अपना कार्य आसानी से कर सकते हैं।”
सुबह के ८ बज गए हैं।अभी तक आप सोते ही रहेंगे, क्या ?, आज ऑफिस नहीं जाना ?”
पत्नी की यह बात सुनकर मेरी नींद खुल गई और मैं सपने से अपनी वास्तविक दुनिया में आ गया…।

परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”