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मजदूरों का आत्मविश्वास बढ़ाएं, शोषण नहीं करें

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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जीवन संघर्ष (मजदूर दिवस विशेष)……

‘ये मेहनत का पसीना है, अपने-आपमें मोती है,
बस जरूरत है इस मोती को परखने वालों की।’

इसे समझते हुए श्रमिक दिवस पर हमें अभिनंदन करना चाहिए छोटे कामगारों का, मजदूरों का, जिनके बिना सब अधूरा है। भारत की आजादी के बाद सबसे ज्यादा संघर्ष जिन्होंने किया, वह मजदूर ही थे। धीरे-धीरे परिवर्तन की लहर चली, तो इनको जमींदारों, ठेकेदारों लाला, मुनीमों के चंगुल से निकाला गया। जो बंधुआ मजदूर थे, शिक्षा का अभाव था, मरता क्या नहीं करता, तो वह तो श्रम करता रहा। जैसे- जैसे भारत आगे बढ़ा, जागरूकता आई। शिक्षित समाज में मजदूर भी साक्षर हो गए। ऐसे में पसीने की कीमत को समझने वाले लोगों को इन मेहनतकश लोगों के बारे में अब और ज्यादा सोचना होगा। जो अपना हक़ नहीं मांगते, वह तो ईमानदारी से आपकी सेवा में खुश हैं, मजदूरी कर रहे हैं। उसी कीमती पसीने की बूंदें मालिक के लिए सोने के समान है। मालिक कमाई करता है और मजदूर अपना पूरा काम, पर उसे मजदूरी का पूरा हक अभी भी नहीं मिल पा रहा है! पहले मिलों व कारखानों में मजदूर के हक की लड़ाई होती थी, लेकिन अब निजी क्षेत्रो में कामगारों व मजदूरों की लड़ाई है। १०-१२ घंटे काम करने वाले गरीब मजदूरों को अपना पूरा मेहनताना भी नहीं मिल पाता है। मजदूर कितने संघर्षों से अपने परिवार का लालन-पालन करता है, तब जाकर दो जून की रोटी नसीब होती है। बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों के श्रमिक लोग रोजगार की तलाश में पूरे भारत में अपने परिश्रम का लोहा मनवा रहे हैं। वह कर्मशील, निष्ठावान और व्यवहार में सौम्य होते हैं, जो सभी को प्रभावित करते हैं।
ऐसे तो मजदूरों की करुणा की कहानी पूरे देश ने महामारी मतलब ‘कोरोना’ काल में देखी थी, जब नंगे पैर से ही अपने गाँव-कस्बे में जाने के लिए निकल पड़े थे। हजारों किलोमीटर का सफर तय करके भूख-प्यास भूल कर आगे बढ़ते जाते थे। उनके पास उस समय खाने के दाने भी नहीं थे, तब भी वो पानी पीकर आगे बढ़ते रहे। वह हताश नहीं हुए, उनका मनोबल कमजोर नहीं हुआ। इसी आत्मविश्वास को देखते हुए आमजनों ने उनकी मदद की। गरीब मजदूरों के लिए लाखों हाथ उठे, उनके लिए बहुत साथी बने। मजदूरों के आत्मविश्वास, एकता, भाईचारे व जीवन के संघर्ष को हाल ही में उत्तराखंड में सुरंग में फंसने के समय भी पूरे विश्व ने देखा था। श्रमिकों की इन सच्ची कहानियों ने अपना पक्ष रखा।
आज़ गरीब मजदूर के लिए समाज को भी उनके हक का ध्यान देना ही होगा। मजदूरों के बिना कोई भी काम नहीं हो सकता। हर एक काम में घर, सड़क ,कारखाने, खेत- खलिहान, मिल सहित सभी बड़े-बड़े उद्योग-धंधों में मेहनतकश मजदूरों के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। इसलिए उनका शोषण नहीं होना चाहिए, पूरा मेहनताना मिलना चाहिए।

तभी आज श्रमिक दिवस की प्रासंगिकता कायम होगी, क्योंकि ‘हम मेहनतकश इंसान जब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक खेत नहीं, एक बाग नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे’ कहकर गीतकार ने मजदूरों पर इतने अच्छे शब्दों में उनकी बात रखी है। हम सभी को मजदूरों के प्रति सकारात्मक सोच रखनी होगी, क्योंकि वह हमारे राष्ट्र के लिए सिरमौर हैं। मजदूरों की उपलब्धि का सम्मान व देश में उनके योगदान का आभार व्यक्त करना हम सभी का फर्ज है। हर एक मजदूर को उनका पारिश्रमिक मिलता रहे, तभी मजदूर दिवस की सार्थकता है।