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आर्थिक मोर्चे पर सशक्त होता भारत

ललित गर्ग

दिल्ली
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आम चुनाव के अंतिम चरण में कन्याकुमारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ध्यान को लेकर विपक्ष की घमासान राजनीति हो रही है। इस राजनीतिक गर्मा-गर्मी के बीच आर्थिक मोर्चे पर २ शानदार खबरें आई है, जो न केवल चौंका रही है, बल्कि अपूर्व खुशी का अहसास करा रही है। भारत भूमि पर भारतीय रिजर्व बैंक के खजाने में १०० टन से कुछ ज्यादा स्वर्ण का शामिल होना सुखद और गौरवान्वित करने वाली खबर है। इसी तरह दूसरी खबर है पूर्व के सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए देश की अर्थव्यवस्था ने ८.२ फीसदी की दर से उड़ान भरी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष २०२३-२४ की जनवरी-मार्च चौथी तिमाही में सालाना आधार पर ७.८ प्रतिशत की दर से बढ़ी है। इसके साथ ही पूरे वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर बढ़कर ८.२ प्रतिशत हो गई। जीडीपी की यह रफ्तार दुनिया के सभी विकसित एवं विकासशील देशों में सर्वाधिक है। उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति की यह तेज गति सशक्त अर्थव्यवस्था को एवं दुनिया की तीसरी आर्थिक महाताकत बनने के संकल्प को बल देगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की एक मौलिक सोच एवं दृष्टि से ही भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में एक चमकते सितारे के रूप में उभरी है, सुदृढ़ आर्थिक विकास के सुनहरे परिदृश्य प्रस्तुत कर रही है एवं ‘मजबूत आर्थिक विकास’ को दर्शा रही है।
जीडीपी के शिखर की ओर बढ़ने की गति भारत के शक्तिशाली बनने का आधार है। विनिर्माण, निर्माण, लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं द्वारा प्रोत्साहित, चौथी तिमाही की ७.८ प्रतिशत की वृद्धि दर अर्थशास्त्रियों द्वारा लगाए गए ७.३-७.४ प्रतिशत के उच्चतम अनुमान से कहीं अधिक रही है। और ८.२ प्रतिशत की पूर्ण वर्ष की वृद्धि दर आरबीआई द्वारा अनुमानित ७ प्रतिशत और एनएसओ द्वारा ७.६ प्रतिशत के दूसरे अग्रिम अनुमान से अधिक है। यह आँकड़ा सभी अनुमानों एवं पूर्वानुमानों से ऊपर है। यह आर्थिक विकास देश को न केवल विकसित देशों में, बल्कि इसकी अर्थव्यवस्था को विश्व स्तर पर तीसरे स्थान दिलाने के संकल्प को बल देने में सहायक बनेगा। यह जीडीपी इसलिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि, सरकार ने देश के आर्थिक भविष्य को सुधारने पर ध्यान दिया, न कि लोकलुभावन योजनाओं के जरिए प्रशंसा पाने अथवा कोई राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की है। राजनीतिक हितों से ज्यादा देशहित को सामने रखने की यह पहल अनूठी है, प्रेरक है। अमृत काल तक भारत की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का लक्ष्य निश्चित ही हम हासिल करेंगे।
ध्यान देने की बात है कि, आजादी के बाद की अधिकतम शासन करने वाली सरकारों ने आर्थिक संकट ही खड़े किए थे। १९९१ में जब भारत पर आर्थिक संकट आया था, तब शायद भारतीय अर्थव्यवस्था से दुनिया के ज्यादातर देशों का विश्वास कुछ डिग गया था। मजबूरी में देश को अपना सोना विदेश भेजना पड़ा था। तब कर्ज का जाल भारी हो गया था, लेकिन आज भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन कर रही है और कर्ज चुकाना अब समस्या नहीं है। ऐसे में इतने बड़े पैमाने पर विदेश से सोना लाने की प्रशंसा ही की जा सकती है। बीते मार्च के अंत तक रिजर्व बैंक के पास ८२२.१ टन सोना था, जिसमें से ४१३.८ टन विदेश में था। वास्तव में, अपना सोना किसी अन्य देश में रखने को बहुत अच्छा नहीं माना जाता है। बैंक शायद संदेश देना चाहता है कि, भारत अब शक्तिशाली है और वह अपने सोने की हिफाजत खुद कर सकता है। आज अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हम ब्रिटेन से आगे निकल गए हैं, तो हमें अपनी नीतियों में गरिमा के अनुरूप परिवर्तन करना ही चाहिए। वैसे, भारत की स्थिति अचानक नहीं सुधरी है। एक खास बात यह भी है कि, भारत चालू वित्त वर्ष में ऐसे चंद देशों में शुमार है, जिन्होंने सोना खरीदा है। बैंक ने कुछ ही महीनों में २७.५ टन सोना खरीदकर अपने स्वर्ण भंडार में जमा किया है। स्वर्ण भंडार के मामले में भारत अभी दुनिया में नौवें स्थान पर है और अमेरिका के पास सर्वाधिक ८१३३ टन से ज्यादा सोना है। जर्मनी के पास ३३५२ टन सोना है। उसके बाद इटली, फ्रांस, रूस, चीन और जापान आदि है। समय के साथ सोने का भाव बढ़ता ही रहा है। जाहिर है, सोने की मांग नहीं घटने वाली, पर ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को अपनी बुद्धि, कौशल और श्रम से सोना खरीदने में सक्षम होना पड़ेगा, तभी देश के स्वर्ण भंडार की खनक-चमक बढ़ेगी। कई उच्च आँकड़े संकेत देते हैं कि, वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था लचीली और उत्साही बनी हुई है। श्री मोदी यदि तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री चुने जाते हैं तो भारत की आर्थिक विकास गति जारी रहेगी। जीडीपी एवं आर्थिक गति अनुमानों को ठुकराते हुए नई छलांगें लगाएगी।
संतोष का विषय है कि, भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। ‘इंडियन इकॉनमी-अ रिव्यू’ में यह उम्मीद जताई गई है कि, भारत २०२७ तक ५ ट्रिलियन डॉलर और ३० तक ७ ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार इस बात की गारंटी दे रहे हैं कि, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जाएगा। भारत फिलहाल दुनिया की ५वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। तमाम तरह की अनुकूलताओं एवं गुलाबी अर्थ रंगों के बावजूद हमें आर्थिक गति की बाधाओं पर भी ध्यान देना होगा। तेज विकास दर के बावजूद रोजगार के मोर्चे पर खास प्रगति नहीं हुई है। आज भी युवा बेरोजगारी का स्तर ४० फीसदी तक बताया जाता है। यह स्थिति गंभीर इसलिए भी है कि, यह तेज विकास दर के फायदों को सीमित करती है। एक बड़ी चुनौती यह भी है कि, निजी पूंजी निवेश में बढ़ोतरी नहीं हो रही है। सच्चाई यही है कि, जब तक जमीनी विकास नहीं होगा, तब तक आर्थिक विकास की गति सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी।