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आम की कीमत

शीलाबड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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कालू अपने गाँव में खेत पर आम के पेड़ में पत्थर मारकर आम तोड़ रहा था। ५-६ आम खेत में गिर गए। उन्हें वह उठकर थैली में रख रहा था। सोच रहा था कि कुछ और आम तोड़ लूं और उन्हें बेचकर अपने पिता की दवाई खरीद लूंगा। तभी पत्थर मारता, गाली देता हुआ, खेत का मालिक दौड़ता- दौड़ता कालू की तरफ आ रहा था। उसका एक पत्थर जाकर कालू के पैर पर जोर से लगा। चोट के दर्द के मारे वह भाग नहीं पाया और खेत मालिक ने कालू का कान पकड़कर उसकी पिटाई शुरू कर दी। वह बोला-“काका! मुझे मत मारो, मत मारो।”

“क्यों-क्यों नहीं, मारूं ? मैं रोज सोचता हूँ कि मेरे पेड़ से आम चुरा कर कौन ले जाता है। आज चोरी करने वाला पकड़ में आया है। तुम्हें आज मैं छोड़ूंगा नहीं।”
“काका, मुझे मत मारो। काका मुझे मत मारो। मेरे पिता बहुत बीमार है उन्हें दवाइयों की जरूरत है, मेरे घर में कोई कमाने वाला नहीं है। इसलिए मैं कुछ आम तोड़कर बेचकर उनकी दवाई खरीद लेता हूँ।”
“तो इसका मतलब क्या हो कि, तुम मेरे पेड़ के आमों को चुरा-चुरा कर रोज बेचोगे।”
“नहीं काका, ऐसा नहीं, पर मैं क्या करूं ? मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं।”
और खेत वाले को धक्का देकर कालू आम लेकर भाग जाता है, पर जैसे ही गाँव के पास पहुँचता है तो उसका दोस्त रामू दौड़ता हुआ उसके पास आता है- “कालू जल्दी चलो, जल्दी। काका की तबीयत बहुत खराब है और वह तुम्हें याद कर रहे हैं।”
कालू के हाथ से सारे आम गिर जाते हैं और वह दौड़ता-दौड़ता अपने घर की तरफ जाता है, पर इतने सारे लोगों को देखकर वह घबरा जाता है। घर के अंदर जाता है और देखता है कि, उसके पिता आँख बंद करके चुपचाप लेटे हुए हैं। वह उन्हें उठाता है,-“बापू उठो ना, उठो बापू उठो। मैं तुम्हारी दवाई जल्दी ले आऊँगा। तुम जल्दी ठीक हो जाओगे। बापू उठो ना।”
पड़ोस की दादी बोली,-“बेटा तेरा बाप अब नहीं उठेगा। हमेशा के लिए सो गया।”
कालू जोर-जोर से रोने लगा,-“बापू अब मैं किसके साथ बात करूंगा, किसके साथ खाऊँगा, कौन कहेगा,
हमेशा खुश रहना। मेरी तो खुशियाँ तुम से थीं बापू। अब मैं क्या करूंगा, कैसे रहूँगा!”
उसकी बातें सुन सभी की रुलाई फूट पड़ी। पड़ोसी क्रिया-कर्म की तैयारी कर रहे थे। बच्चे को समझा कर बच्चे को आगे कर गाँव वाले श्मशान की ओर जाने लगे। सामने से खेत वाला आ रहा था। उसने देखा कि, यह तो वही आम चुराने वाला लड़का है तो वह ठिठक गया। फिर गाँव वालों के साथ हो लिया। रास्ते में मन में सोचा कि, अब खेत के आम की चौकीदारी इसी लड़के को दे दूंगा, आज मुझसे जो गलती हुई, उसको सुधार तो नहीं सकता, लेकिन ‘प्रायश्चित’ तो करना होगा।

परिचय-शीला बड़ोदिया का साहित्यिक उपनाम ‘शीलू’ और निवास इंदौर (मप्र) में है। संसार में १ सितम्बर को आई शीला बड़ोदिया का जन्म स्थान इंदौर ही है। वर्तमान में स्थाई रूप से खंडवा रोड पर ही बसी हुई शीलू को हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान है, जबकि बी.एस-सी., एम.ए., डी.एड. और बी.एड. शिक्षित हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत होकर आप सामाजिक गतिविधि में बालिका शिक्षा, नशा मुक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी को समझाओ अभियान, पेड़ बचाओ अभियान एवं रोजगार उन्मुख कार्यक्रम में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, संस्मरण, गीत और जीवनी है। प्रकाशन के रूप में काव्य संग्रह (मेरी इक्यावन कविता) तथा १५ साझा संकलन में रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। इनको मिले सम्मान व पुरस्कार में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सम्मान (साझा संकलन), विश्व संवाद केंद्र मालवा (मध्य प्रदेश) द्वारा सम्मान, कला स्तम्भ मध्य प्रदेश द्वारा सम्मान, भारत श्रीलंका सम्मिलित साहित्य सम्मान और अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान आदि हैं। शीलू की विशेष उपलब्धि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में रचना का शामिल होना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य में उत्कृष्ट लेखन का प्रयास है। मुन्शी प्रेमचंद, निराला, तुलसीदास, सूरदास, अमृता प्रीतम इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज गुरु हैं। इनका जीवन लक्ष्य-हिन्दी साहित्य में कार्य व समाजसेवा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी रग-रग में बसी है।”