कपिल देव अग्रवाल
बड़ौदा (गुजरात)
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अगर शाख सूखी मेरी जिन्दगी की,
मैं माली से उसका चमन छीन लूंगा
मेरा दिल नहीं है ये वीरां के काबिल,
मैं बढ़ कर गुलों से बहार छीन लूंगा।
बुढापा, असमंजस में क्यों है प्यारे,
क्यों अपना धीरज खोता है।
जब-जब, जो-जो होना है,
बस तब-तब सो-सो होता है॥