राधा गोयल
नई दिल्ली
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‘योग’ का अर्थ आत्मा और परमात्मा का मिलन है। जीव का ब्रह्म से मिलन है। योग कई प्रकार के होते हैं। अष्टांग योग में कसरत, ध्यान, साधना, समाधि आदि कई क्रियाऍं शामिल हैं।
🔹ध्यान क्यों आवश्यक है ?-
ध्यान क्यों आवश्यक है ?, इसे अपने संस्मरण द्वारा ही बताना चाहूँगी। अगस्त १९९५ में मेरे सिर की ३ हड्डियाँ व गाल की हड्डी टूट गई थीं। उसके बाद बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ा।असहनीय दर्द। उसी की वजह से बाद में लैफ्ट टैम्पोरल लोब में सिस्टीसरकोसिस हो गया, जो बाद में ब्रेन ट्यूमर में बदल गया। सभी चिकित्सकों ने दिमाग के ऑपरेशन के लिए बोल दिया। एम्स में भी सभी चिकित्सकों ने ऑपरेशन की सलाह दी। शुक्र है मेरी सीनियर सर्जन डाॅ. मंजरी त्रिपाठी का…, जिन्होंने कहा कि, ऑपरेशन कराने पर भी आपको केवल ०.५ प्रतिशत फर्क पड़ेगा।आँखों की रोशनी जा सकती है। लकवा हो सकता है, इससे बेहतर है कि, आप प्राणायाम किया करो। मैंने १९९५ से ही ध्यान व प्राणायाम करना शुरू कर दिया था। पहले केवल सुबह के समय करती थी। फिर शाम को भी करना शुरू कर दिया था, क्योंकि एम्स का इलाज कराने से पहले मेरी आँखों की रोशनी २ बार चली गई थी। एक बार तो मैं अकेली थी। दूसरी बार पति घर में थे। तब जयपुर गोल्डन अस्पताल से मुझे २००७ में एम्स में ऑपरेशन के लिए रैफर कर दिया था।
१९९५ में ही किसी ने मुझे ध्यान लगाने के लिए बताया। यह भी कहा कि , ध्यान लगाते समय यदि कहीं खुजली हो रही हो तो खुजाना भी नहीं है। जहाँ बहुत दर्द हो रहा हो, उस जगह पर ध्यान लगाकर यह सोचना है कि, मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ। ‘नहीं’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना।
🔹ध्यान लगाने बैठती थी-
ध्यान मुद्रा में बैठो तो ज्यादा असर होता है। जब भी ध्यान लगाने बैठती थी, तो घर में कोई ना कोई मिलने के लिए चला आता था। तब ध्यान नहीं लगा पाती थी। मैंने दूसरा उपाय अपनाया। मैं दीपक जलाकर और सामने रामायण रखकर बैठ जाती थी। जो आता था, उसको यह लगता था कि मैं रामायण का पाठ कर रही हूँ, और वह वापस चला जाता था। ध्यान करते समय इस बात का ध्यान करती थी कि, यदि १ घंटा ध्यान लगाना है तो कितनी भी खुजली मचे, खुजाना नहीं है। जहाँ तकलीफ हो रही है, वहाँ ध्यान लगाकर यह सोचना है कि, मेरी तकलीफ ठीक हो गई है।
🔹काढ़े की बजाय लगाने वाला तेल पी लिया
एक बार का किस्सा तो बहुत ही मजेदार है। मैं दिमाग के इलाज के लिए एलोपैथी व आयुर्वेदिक दोनों तरह की दवाई खाती थी। जब एक बार स्पाइन और घुटनों की सर्जरी के लिए चिकित्सक ने कहा तो कई अलग-अलग अस्पताल में दिखाया। एम.आर.आई देखकर सभी ने सर्जरी की ही सलाह दी। मुझे आयुर्वेदिक में ज्यादा विश्वास है, इसलिए केरल के एक मशहूर अस्पताल में दिखाया। उन्होंने भी एम.आर.आई देखकर यही कहा कि स्पाइन की सर्जरी कराने की नौबत न आए, इसके लिए कोशिश कर सकते हैं। केवल कोशिश, किन्तु घुटनों की हड्डियाँ टेढ़ी हो गई हैं, उसके लिए ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है। वहाँ १५ दिन दाखिल रही। छुट्टी मिलने पर वहीं से आयुर्वेदिक दवाएँ भी ले आई थी। ऐलोपैथी के बाद आयुर्वेदिक दवा भी खाती थी। एक सिर में लगाने का आयुर्वेदिक तेल और एक पीने का काढ़ा भी था। तेल व काढ़े की शीशियों का रंग लगभग एक जैसा था। एक रात मैंने सिर में तेल लगाया और बिजली बंद करके बिस्तर में लेट गई। लेटते ही याद आया कि, काढ़ा पीना तो भूल गई। अंधेरे में ही शीशी उठाई और एक घूँट मुँह में उँडेल ली। पीते ही मुँह बुरी तरह कसैला हो गया। मिचली आने लगी। समझ आ गया कि, मैंने काढ़े के बजाय सिर में लगाने वाला ‘क्षीरबला तेल’ पी लिया है। सारी रात नींद नहीं आई। ‘सारी रात’ अपने दिमाग की शिराओं पर ध्यान लगाकर यह देखती रही कि, यह तेल अब इस शिरा में जा रहा है,अब उस शिरा में जा रहा है। लुब्रिकेशन कर रहा है। सुबह तक मेरे ब्रेन की सारी तकलीफ दूर करके मुझे बिल्कुल स्वस्थ कर देगा।
🔹 दोनों का ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट’-
मेरे दोनों घुटनों का ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट’ हुआ था। चिकित्सक ने पहले ही कह दिया था कि, ३ महीने तक इतना दर्द होगा कि आप यह सोचोगी कि, मैं ऑपरेशन करने से पहले ज्यादा अच्छी थी। उस समय भी ध्यान मेरे बहुत काम आया। सारा दिन बिस्तर में ही पड़े रहना था। और तो कोई काम था नहीं, सिवाय अपनी कसरत करने के। कसरत भी करती थी, ध्यान भी लगाती थी। टेपरिकार्डर पर पर पुराने गाने सुनती थी और अपने खाली समय का पूरा सदुपयोग करती थी। उस समय बैठकर लिख नहीं पाती थी। किताब भी नहीं पढ़ पाती थी, तो लेटे-लेटे ही ध्यान लगाने का अच्छा अवसर मिल जाता था और समय का सदुपयोग भी हो जाता था। इससे बीमारी पर भी ध्यान कम जाता था।
🔹अहम् ब्रह्मास्मि’ से बड़ी शान्ति-
घर में कभी-कभी किसी के बहुत ज्यादा अति करने पर गुस्सा भी आ ही जाता है। घर में अक्सर हमारे अपने ही हमें कई बार ऐसी बात कह देते हैं कि, दिल बुरी तरह से घायल हो जाता है। पलट कर जवाब देने का बहुत दिल करता है, लेकिन इससे समस्या का हल तो हो नहीं जाएगा। बहुत से लोग पलटकर जवाब देने से और अधिक आक्रामक हो जाते हैं। घर की शांति भंग हो जाती है। बच्चों पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। उस वक्त ध्यान लगाकर भाव पूर्वक ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का चिन्तन करने से बड़ी शान्ति मिलती है। चिन्तन से समस्या का हल मिल भी जाता है। ‘आसन या वर्जिश’ यदि तन के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, तो ध्यान व प्राणायाम मन को स्वस्थ रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।