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यथार्थी छंद विधान 

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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रचनाशिल्प:१८ वर्ण, प्रति चरण ४ चरण, २-२ समतुकांत हो,
९, १८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य मगण मगण सगण, भगण भगण मगण २२२ २२२ ११२, २११ २११ २२२

जो पाए वे खोए जग में, जीवन एक पहेली है।
झूठे नाते-रिश्ते अपने, संगति मृत्यु सहेली है।
जन्मे तू तू मैं मैं जपना, मानव मानस आते ही।
तेरा-मेरा जाना सबने, ज्ञान हुआ वय पाते ही।

क्या पाया है कैसे किसने, चैन इसी पर खोया है।
क्या खोया है कैसे हमने, सोच यही नर रोया है।
क्या है तेरा-मेरा सबका, ये भगवान सभी के हैं।
योगी भोगी राजा जन हो, अंत समान सभी के हैं।

झूठे झाँसे चोरी चुगली, लूट करे नर ठाले ही।
ईमानी धोखे से डरिए, नाग डसे घर पाले ही।
मेरी बातें मानें मनुवा, प्रीति निभा हरि से प्यारे।
छंदों के शोधों में रमता, ‘विज्ञ’ रचे पद न्यौछारे।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा है। आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) है। सिकन्दरा में ही आपका आशियाना है।राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (राजकीय सेवा) का है। सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैं। लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैं। शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया है।आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः है।