दिल्ली
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बेहतर सेवाओं के नाम पर सरकारें कई तरह के शुल्क वसूलती है, इसमें कोई आपत्ति एवं अतिश्योक्ति नहीं है, लेकिन सेवाएं बेहतर न हो, फिर भी शुल्क या कर वसूलना आपत्तिजनक, गैरकाूननी, एक तरह से आम जनता का शोषण व धोखाधड़ी है। राजमार्ग एवं अन्य मार्गों पर बेहतर एवं सुविधाजनक सड़कों के नाम पर एजेंसियों द्वारा पथ कर (टोल टैक्स) वसूला जाता है, लेकिन विडम्बना यह है कि, टूटी-फूटी सड़कों के नाम पर भी कर वसूला जाता है, जो अन्यायपूर्ण है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के हालिया बयान में जनता के इस बड़े दुःख, धोखाधड़ी एवं शोषण पर न केवल दुःख जताया गया, बल्कि ऐसी जबरन वसूली को रोकने के लिए अधिकारियों को चेताया है। अपनी बात को बेबाकी से कहने वाले नितिन गडकरी ने कहा कि, कर वसूलने से पहले हमें अच्छी सेवाएं देनी चाहिए, लेकिन हम अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए कर वसूलने की जल्दी में रहते हैं। सड़क कर का उपयोग राज्य के भीतर सड़कों के रखरखाव और विकास के लिए किया जाना चाहिए, न कि सरकार की आमद को बढ़ाने के लिए। ऐसे अनेक उदाहरण है कि, बिना सुविधा एवं आवश्यकता के भी कर वसूला जा रहा है। राज्य सरकारें भी स्वतंत्र रूप से कर वसूलती है। दूसरी ओर यह कर एक उपयोगकर्ता शुल्क है जिसे वाहन मालिकों को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण या निजी ठेकेदारों को कुछ पथ सड़कों, जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग, एक्सप्रेस-वे, पुल और सुरंगों का उपयोग करने के लिए देना पड़ता है, जो अन्य की तुलना में इन सड़कों को उच्च गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों की माना जाता है।
निश्चित रूप से किसी देश को विवेकपूर्ण, बेहतर सुविधाओं एवं विकास के नए मानकों के साथ चलाने के लिए सरकार को पात्र नागरिकों से कर एकत्र करने में कोई ऐतराज नहीं है; लेकिन सड़कें हो या अन्य सुविधाएं, अच्छी नहीं होने पर भी कर वसूलने पर उपभोक्ता स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है। इसके कारण कर वसूलने वाली एजेन्सियों के खिलाफ शिकायतें बढ़ती जा रही है। यह बात हर सरकारी व निजी महकमे पर भी लागू होती है, लेकिन यथार्थ में ऐसा होता नहीं है और बेहतर सेवा के बिना कर वसूलने की स्थितियाँ लगातार बढ़ती जा रही है। इन स्थितियों को लेकर आम जनता एवं उपभोक्ताओं में विरोध एवं विद्रोह पनप रहा है, इसलिए सरकार एवं ऐसी एजेन्सियों के खिलाफ लोग लोक अदालतों से लेकर विभिन्न अदालतों के दरवाजे खटखटाते रहते हैं। किसी भी विभाग को अपनी खामियों पर पर्दा डालने के बजाय सेवा में सुधार की पहल करनी चाहिए। चाहे मामला राष्ट्रीय राजमार्गों पर कार्यरत एजेंसियों का हो या फिर बिजली-पानी जैसी मूलभूत जरूरतों वाले विभागों का। अधिकारियों को उपभोक्ताओं के प्रति संवेदनशील एवं जिम्मेदार होना चाहिए।
नियंत्रण से बाहर होती हमारी व्यवस्था हमारे लोक-जीवन को न केवल अस्त-व्यस्त कर रही है, बल्कि परेशान भी कर रही है। बिना सुविधा के भी कर वसूलने की स्थितियाँ सरकार पर बदनुमा दाग है और ऐसे दाग लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बहरहाल केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री ने कहा कि सड़कें अच्छी नहीं होने पर तमाम शिकायतें हमें मिलती हैं। दूसरी ओर सामाजिक माध्यमों पर लोग अपना गुस्सा जाहिर करते हैं। सही मायनों में गुणवत्ता की सड़क प्रदान करने पर ही हमें कर वसूलने का अधिकार मिलता है। जाहिर सी बात है कि गड्ढों व कीचड़ वाली सड़कों पर टैक्स वसूलने पर पब्लिक की नाराजगी स्वाभाविक रूप से सामने आएगी। निस्संदेह, परिवहन मंत्री की स्वीकारोक्ति स्वागतयोग्य है पर जरूरत इस बात की भी है कि ऐसी शिकायत दर्ज करने और तुरंत निवारण हेतु एक स्वतंत्र तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए।
मोदी सरकार ने सड़कों को सुविधाजनक बनाया है। आने वाले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम आधारित कर संग्रह प्रणाली को अंजाम देने की तैयारी में है, जिसके बाद राष्ट्रीय राजमार्गों पर कर द्वार की जरूरत नहीं रह जाएगी और गाड़ी धीमी करने व रोकने की भी जरूरत नहीं रहेगी। यह व्यवस्था सड़क-क्रांति को एक नई दिशा देगी। इसके बावजूद यह जरूरी है कि गुणवत्ता वाली सुविधा की सड़कों पर ही सरकार कर वसूले।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की २०१९ की एक रिपोर्ट के अनुसार, एचएचआई सड़क निर्माण और रखरखाव के अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल रहा है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एचएचआई ने टोल अनुबंधों को आकार देने और निगरानी के लिए निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है और सड़कों की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की है। रिपोर्ट में कर संग्रह प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी और दोषपूर्ण टोल प्लाजा, ओवरचार्जिंग और लंबी कतारों के कारण सड़क उपयोगकर्ताओं को होने वाली परेशानी और असुविधा पर भी प्रकाश डाला गया है। इन सभी हालातों को देखते हुए भारत में राजमार्गों एवं सुविधा की सड़कों के नाम पर हो रही पथ कर वसूली को औचित्यपूर्ण एवं न्यायसंगत बनाने की अपेक्षा है। असुविधाओं एवं धोखाधड़ी की बढ़ती स्थितियों को गंभीरता से लेना होगा।