कपिल देव अग्रवाल
बड़ौदा (गुजरात)
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हम क्या कर रहे हैं ?, कभी-कभी हमें खुद की विवेचना भी करनी होगी। आजकल हमारे बच्चे होशियार तो हैं, लेकिन समझदारी की कमी देखने को मिल रही है। समझदारी-अपने कामों के प्रति, अपने परिवार, रिश्तों के प्रति, व्यवहार और अपनी सोच के प्रति, अपने चाल-चलन के प्रति, कहाँ गई वो समझ। अब समझ आ रहा है कि, राजनीतिक षड्यंत्र के चलते हमसे हमारी भाषा छीन ली गई थी और अंग्रेजी की ओर धकेला गया। हमारी परम्पराएँ, हमारे रीति-रिवाज, मान्यताएँ, जीवन के नियम और सिद्धांत, इन सबसे हमें दूर रखा गया, और आज यह परिणाम है कि बच्चे तनाव में हैं, अव्यवस्थित हैं, व्यथित हैं।
हिंदी भाषा का ज्ञान इन सारी बीमारियों में से कुछ का तो सुधार कर सकता है, क्योंकि इसमें व्यापकता है, रचनात्मकता है, और सृजन की क्षमता है। अंग्रेजी के मूल कोष में कुल १८ हजार शब्द हैं, इसीलिए दुनिया की सबसे कमजोर भाषा में शुमार है, लेकिन भाग्य देखो, आज दुनिया की भाषा बनी हुई है, जबकि हिंदी शब्द कोष में ८५ हजार शब्द हैं, जिससे इसमें संवाद की क्षमता बहुत अधिक है।
जीवन के आध्यात्म का विस्तार है। यह संवाद और आध्यात्म हमें अपने युवा से जोड़ेगा। इसलिए अपने युवाओं को हिंदी भाषा की ओर मोड़ना होगा। हिंदी के प्रति उनकी जिज्ञासा जाग्रत करनी होगी। क्या हम सब मिलकर कुछ कर सकते हैं। मैंने प्रयत्न किया था। ‘मानव चेतना केंद्र’ नाम की संस्था भी शुरू की, लेकिन अकेला पड़ गया। फिर शायद जन्म कुंडली में अर्थ की कमी का योग था, लेकिन सोच हमेशा जीवित रही, प्रयत्न हमेशा ताजा रहा। इसी के चलते आज यह प्रश्न आपकी ओर भेजा है, इस अनुरोध के साथ कि कुछ विचार किया जाए, कुछ सोचा जाए।