हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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वे गोबर से मटमैले हाथ, पसीने की बूँदों से तर वह चेहरा
गौ सेवा में रत ओ री देहातन! कितना सुन्दर रूप वह तेरा ?
आठों याम तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी
दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूँ ही गुजर जाती है ज़िंदगानी।
बचपन-बुढ़ापा यूँ ही गुजरे तेरा, तेरी यूँ ही गुजरे ये जवानी
शालीन, सभ्य ओ नारी रत्न, तेरी कौन समझेगा यह कहानी ?
जो भी किया वह दूसरों के लिए, किया तूने ओ महादानी!
देहात से शहर तक मेहर तेरी पर, किसी ने ये कब है मानी ?
जब जूझती है नित नई उलझन से, लगती है झाँसी की रानी
खेत-खलिहानो में उगाती फसलें, खिलाती सबको है महारानी।
दिन व दिन की मेहनत के चलते, ढल जाती तेरी जवानी
हाड़-माँस सब सुखा देती है तू, सुखा देती है चेहरे का पानी।
झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी
बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।
वह सुख सन्तोष उन झुरियों से झरता, बस काया हुई पुरानी।
बूढ़ी धमनियों में अभी भी शेष है, लहू में वही स्फूर्ति रवानी॥