हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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मेघ, सावन और ईश्वर…
जब जगत के पालन हारे गहरी निद्रा में लीन हो जाते हैं, तब चौमासा-चातुर्मास का यह समय बड़ा पावन होता है। वर्षा की इस ऋतु में धरती उल्लास और आंनद की अनुभूति करती है। प्रकृति, पर्यावरण और हरियाली इन मेघों की बरसात में आसमान को सतरंगी कर देते हैं। घनघोर बादलों की गड़गड़ाहट से एक अलग शोर सुनाई देता है। उसी के बीच में जब बिजली चमकती है, तो मानों ईश्वर भी हम धरतीवासियों का चित्र खींच रहा होता है। वर्षा ऋतु में हर पशु, पक्षी, जीव-जन्तु व मानव सभी झूम जाते हैं। नाचना, गाना कालों के काल महाकाल की आराधना करना सावन के पवित्र महीने में बहुत ही पुण्यशाली माना जाता है, क्योंकि भगवान विष्णु अपनी सत्ता देवों के देव महादेव को सौंप देते हैं। भोले तो भक्तों की भक्ति में ही लीन रहते हैं। भोले भंडारी का यह दिव्य स्वरूप सावन माह में इतना सुंदर व दिव्य हो जाता है। मानों धरती का सत्य सुंदर हो गया हो, शिव ही तो सुंदर माने गए हैं। ऐसे सुहाने मौसम में मेघों की बरसात में पेड़-पौधे और धरती सब शिव तत्व में एवं उनकी भक्ति भाव में स्थित हो जाते हैं, क्योंकि ईश्वर सत्य है और सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है। तभी तो आसमान से बरसात का यह पानी स्वरूप अमृत मानव जीवन के लिए बहुउपयोगी माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के बाद सावन माह लग जाता है और चौमासा ईश्वर को समर्पित कर देने के लिए ही होता है। हर एक चीज उस परम पिता परमेश्वर की हमें उधार दी गई है, हमारा इस धरती पर कुछ भी नहीं है। सिर्फ हमारा कर्म ही है, जो हमें सही-गलत का अनुभव कराता है। हम यह जान लें कि, जो साँसें हम लेते हैं, वह भी उसी ईश्वर की दैन है। इसलिए, छल-कपट-मोह माया से बहार निकल कर हम मनुष्य धर्म निभाएँ। यह पर्व, त्यौहार, पूजा-उपासना हमें सत्यं से जोड़ते हैं, तभी शिव के साथ जुड़ जाते हैं। सनातन संस्कृति व परम्परा में भारतीय संस्कृति का बहुत ज्यादा महत्व है। सावन के महीने में त्योहारों की शुरुआत हो जाती है। इसी से हम सभी एकजुटता से प्रेम व स्नेह के साथ मिल-जुल कर रहते हैं। मेघों की इस रिमझिम झड़ी में राग-रागिनी आलाप के सात सुरों का रसपान करते हैं। यह पूरे वातावरण को खुशनुमा कर देता है। सावन में झूले पड़ जाते हैं। सखी लोकगीत नृत्य में आनंदित हो जाती है, वहीं कवि भी सावन में कल्पनाओं की उड़ान भरकर शब्दों की संरचना में गीत-काव्य-छंद आदि का सृजन करता है। परिकल्पनाओं की इस उड़ान में हम सभी इस नाव में सवार होकर इस पवित्र माह सावन में ईश्वर की आराधना करते रहें, तभी हमारे घर-आँगन में खुशियों की बरसात होगी। गर्मी से धरती तप रही होती है, जीव-जन्तु, पशु- पक्षी व मनुष्य गर्मी से परेशान रहते हैं। ऐसे समय में सावन की रिमझिम फुहारों से हर एक जगह पानी पहुँचता है। यह माह धरती पर भगवान का उपहार ही माना जाएगा, जो अमृत तुल्य जल वर्षा के माध्यम से हमें मिलता है। तभी तो सावन में मन भावन हो जाता है। इसलिए हमें शिव-शम्भू की भक्ति व पूजा में लग जाना होगा और ईश्वर का धन्यवाद व्यक्त करना हमारा कर्तव्य व धर्म भी है, क्योंकि वही हमारे इष्ट देव हैं।