हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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सृष्टि रचयिता को शत्-शत् नमन।
समय के लिए भी कहा जा सकता है कि, यह सृष्टि में अंतहीन है। अर्थात सृष्टि का समय अंतहीन है। यह बदलता रहता है और बदलाव के साथ-साथ सृष्टि की प्रत्येक भौतिक संरचना को भी बदला करता है।
आध्यात्मिक इतिहास के अनुसार,-सतयुग में भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश, त्रेता युग में श्री रामचंद्र जी, द्वापर युग में श्री कृष्ण जी सम्पूर्ण विश्व में ईष्ट देव के रूप में पूजे-माने
जाने जाते हैं। प्रत्येक भारत वासी के लिए यह गर्व का विषय है कि, यहाॅं की संस्कृति में ही ‘कण-कण में भगवान’ होने का प्रचलन है।
विभिन्न परम्पराओं-परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक जीवन कर्म करता है, जिन्हें भविष्य में सद्गुण अथवा अवगुण-दुर्गुण मान कर जाना-समझा जाता है।सद्गुणों को सदैव उनके भविष्य में श्रृद्धा, भक्ति, मान-सम्मान मिलता है, परन्तु अवगुणों-दुर्गुणों का प्रसंग जब भी आता है तो उन्हें हेय-दृष्टि से देखा-समझा जाता है।
सतयुग से लेकर आज तक दैत्य रूपी प्रवृत्ति ही विनाशकारी समझी-मानी जाती है।
त्रेता और द्वापर युग में क्रमशः भगवान श्री रामचंद्र और श्री कृष्ण (क्षत्रिय तथा यदुवंशी) ने अपने समय में मानवता के रक्षक बनकर, तात्कालिक महान ज्ञानी लंकापति रावण तथा मथुरा के राजा (कृष्ण के मामा) कंस का उनकी दानवीय प्रवृत्ति के कारण नाश किया था।
सत्यता तथा मानवता के रक्षण में ही द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने पाण्डवों को अपना संरक्षण देकर कौरव सेना के विरुद्ध महाभारत युद्ध किया।
इसका परिणाम कौन नहीं जानता।
प्रत्येक जीवन का आचरण ही उसके वर्तमान से भविष्य का निर्धारण करता है, जिसे कोई नहीं जानता। यह बात तो जग विदित है कि, श्री रामचन्द्र और श्री कृष्ण जी अपने-अपने जीवन काल में मानव ही थे। उन्होंने अपने गुणों के आधार पर कभी नहीं कहा कि, वे देव स्वरूप हैं, परमात्मा हैं। उन्हें ईश्वर ने जग-सुधारक बना कर भेजा है।
इसी तात्पर्य में हमारे आज के महान नेता कहते हैं कि, वे तो सीधे स्वर्ग से उतरे हैं। उन्हें किसी ने नहीं जन्मा। उन्होंने भारतवर्ष के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की लगातार ३ बार प्रधानमंत्री बनने की बराबरी कर ली है। फिर भी तीसरी बार पदभार ग्रहण करने के बाद विदेश जाकर कहते हैं कि, भारत का विकास तो २०१४ के बाद हुआ है। शायद उन्हें नहीं मालूम कि, अमेरिका की वैज्ञानिक संस्था ‘नासा’ ने ही अपनी खोज में बताया है कि,-सूर्य से ॐ की ध्वनि निकलती है, जो हमारे भारतवर्ष का प्रथम पूज्य शब्द है। हमारा गौरव है।
मुझे गर्व है कि, मेरे भारतवर्ष और सबसे बड़े गणतंत्र में मोहम्मद रफी जैसे महान गायक का जन्म हुआ, जिनकी गायकी पूरे विश्व में धूम मचाती थी। वे मुस्लिम थे, लेकिन बीसवीं सदी में उन्हीं ने गाया था ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज… ।’ ऐसे ही ‘सुख के सब साथी, दु:ख में न कोई, मेरे राम तेरा नाम ही सच्चा, दूजा न कोई।’ एवं ‘मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे…’ इत्यादि ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि मानवता ही हर किसी-हम सभी के लिए सबसे बड़ा धर्म है। इसकी रक्षा हो।
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।