गोष्ठी…
इंदौर (मप्र)।
साहित्य के उपासक समूह में ३० अगस्त को ‘महिला सुरक्षा, एक गंभीर चुनौती और समाधान’ विषय पर आभासी विचार गोष्ठी आयोजित की गयी। इस बैठक में देश के विभिन्न नगरों से सम्मिलित सदस्यों ने विचार साझा किए, जिसमें अधिकतर ने महिलाओं से ही उत्पीड़न के विरुद्ध एकस्वर में आवाज़ उठाने और आत्मरक्षा के के लिए स्वयं को तैयार करने का आह्वान किया।
नयी दिल्ली की निशि अरोरा ने लड़का एवं लड़की दोनों के महत्व को बतलाते हुए दोनों के पालन- पोषण में समानता पर बल दिया। वाराणसी की अभिलाषा लाल ने लेख के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। समस्तीपुर के अम्बिका प्रसाद नंदन ने बढ़ते पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव को मानव के चारित्रिक पतन का दोषी माना। गाज़ियाबाद की निकिता श्रीवास्तव ने महिलाओं से ही एकस्वर में आवाज़ उठाने और आत्मरक्षा के लिए स्वयं को तैयार करने का आह्वान किया। इंदौर से निर्मला द्विवेदी ने आरम्भ से ही लड़के और लड़कियों के पालन में समानता पर बल दिया।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के लखनऊ महानगर अध्यक्ष निर्भय गुप्त ने बच्चों को संस्कारवान बनाने में माता-पिता की भूमिका पर ज़ोर देते हुए बढ़ते हुए महिला अपराधों के लिए तड़क-भड़क वाले पहनावे को भी मुख़्य कारण बतलाया। कोलकाता की प्रणाली श्रीवास्तव ने अपनी मर्मस्पर्शी कविता ‘वो चार थे, मैं एक थी’ से विचार व्यक्त किए।
लेखिका शीला बड़ोदिया (इंदौर) ने समाज में घटित हो रही ऐसी घटनाओं के लिए क्रमश: लालन-पालन में असमानता और संस्कारों के अभाव को उत्तरदायी माना। अर्चना द्विवेदी, शुचि भवी, रजनी शर्मा, कृतिका ‘कृति’, भावना मिश्रा और अयोध्या प्रसाद आदि ने भी अपनी भावना व्यक्त की।
संचालन प्रशांत माहेश्वरी ने किया। कोलकाता की वीरांगना को श्रद्धांजलि देते हुए बैठक सम्पन्न हुई।