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हिन्दी निदेशालय की सबसे बड़ी गलती

संशोधित मानक देवनागरी लिपि पर प्रतिक्रियाएँ-२

मुम्बई (महाराष्ट्र)।

रामवृक्ष सिंह (लखनऊ) ने लिखा है) कि मलयाळम के कोऴिक्कोट्, आलप्पुऴा, कनिमॊऴि आदि के लिए व्यवस्था नहीं की गयी, लेकिन पहले प्रकाशित (संभवतः २०१६) पुस्तिका में ही कहा गया था कि जेडएचए के लिए ऴ का प्रयोग करना है। इसी प्रकार के कुछ विशिष्ट निर्देश उसमें शामिल थे। उस संबधित पृष्ठ का संबंधित अंश संलग्न कर रहा हूँ, लेकिन केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की सबसे बड़ी गलती यह है कि उनका स्कूलों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों आदि से शायद कोई संबंध नहीं है।
मेरा अनुभव है कि नागरी लिपि के मानकीकरण संबंधी पुस्तिका अध्यापकों तक पहुँची ही नहीं है। केरल में (केरळम् में) ऴ, ऱ, ऱ्ऱ, ळ आदि वर्णों का बहुप्रचलन होते हुए भी अब भी यहाँ के अध्यापकों का इन वर्णों से कोई परिचय नहीं है। वे अब भी मलयालम, केरल, आलप्पुष़ा, कोष़िक्कोट् ही लिखते हैं। റ के लिए वे र ही लिखते हैं, റ്റ के लिए ट्ट लिखते हैं तथा ळ के लिए ल ही लिखते हैं, जब केरल के हिन्दी अध्यापकों की ही स्थिति यह है तो केरल, तमिऴनाट्, गवा (कोंकण प्रदेश में समग्रतः) प्रचलित इन वर्णों का परिचय हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोगों को नहीं है तो क्या कहना!
🔹डॉ.के.सी.अजयकुमार

🔳आदरणीय डॉ. मोतीलाल गुप्ता जी, हिंदी भाषा में ५२ अथवा ५४ वर्ण होते हैं, जो अंग्रेजी के २६ के मुकाबले दोगुने से भी अधिक हैं। व्याकरण के दृष्टिकोण से यह एक गहन विषय है और इस पर शोध आवश्यक है, पर आज भारत में अंग्रेजी का अनायास प्रयोग तथा हिंदी से बचने का प्रयोग धूमधाम से चल रहा है। इस बात को ध्यान में रख कर यह विचार करना आवश्यक है कि हिंदी को शुद्ध के साथ-साथ सरल कैसे बनाया जाए। ऐसी स्थिति में भाषा विज्ञान आम व्यक्ति तक पहुँचाना घातक भी हो सकता है। अतः यह ज्ञान विकसित अवश्य होना चाहिए, पर इसे

बलपूर्वक लागू करना या त्रुटि करने वालों को उपेक्षित दृष्टि से देखना ठीक नहीं रहेगा। अभी शोध से अधिक प्रयोग पर बल देना आवश्यक है। इस दृष्टिकोण से मराठी का वर्ण ळ का हिंदी में समन्वय एक सक्रिय कदम है, जिसकी सराहना करता हूँ, साथ ही प्रार्थना करता हूँ कि हिंदी के पहरेदार यह भी ध्यान रखें कि शोध के साथ-साथ कैसे अधिक से लोगों को हिंदी से जोड़ा जाए।
🔹डॉ. सुभाष शर्मा, ऑस्ट्रेलिया

🔳नमस्कार सर,
निम्न सुझाव का मैं भी समर्थक रहा हूँ और हूँ। जब भी इस विषय पर बोलने या व्यक्त होने का मौका मिला, मैंने भी इस मुद्दे को उठाया है, बल्कि अनुवाद में या उच्चारण में जहां आवश्यक है वहाँ ‘ळ’ वर्ण का ही प्रयोग करता हूँ, बल्कि पूर्व में मुझे सूचना मिली थी कि निदेशालय ने इस सुझाव को बहुत पहले ही स्वीकार कर लिया था और अपनी वर्तनी पुस्तिका में इसे २-३ साल पहले ही शामिल कर लिया था।
बहरहाल, आपका भी अभिनंदन करते हुए इस बात के लिए हार्दिक बधाई देना चाहता हूँ।
🔹रमेश यादव

🔳एनसीईआरटी से एआईसीटीई तक की हिंदी पुस्तकों में वर्तनी की काफी त्रुटियाँ रहती हैं। बच्चों की पुस्तकों में गलतियाँ उनका भविष्य खराब करती हैं। देश के कर्णधारों को भाषायी अपंग बनाती हैं।
वर्तमान मानकों में कुछ पुराने दुविधात्मक व अवैज्ञानिक नियमों को मानक बनाए जाने के कारण हिंदी, संस्कृत आदि के लिए जेनेरिक व यूनिवर्सल सही स्पेल चेकर बनाना भी अत्यंत जटिल (लगभग असंभव) है। सॉर्टिंग आर्डर, इंडेक्सिंग आदि में काफी गड़बड़ी होती है। शब्दकोश डैटा बेस में एक ही शब्द के विभिन्न रूप अलग-अलग जगह पर बेकार में रिपीट होकर दुविधा व भ्रम पैदा करते हैं। हिंदी को हास्यास्पद बनाते हैं।
🔹हरिराम पंसारी, उड़ीसा

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)