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समाज तथा परिवार के मध्य महती सेतु ‘शिक्षक’

रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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शिक्षक समाज का दर्पण…

आलेख /सब ओल्ड /,

समाज के निर्माण में परिवार के पश्चात मुख्य भूमिका शिक्षक की होती है। परिवार से बच्चे पीढ़ियों पुराने रीति-रिवाज, दीर्घकालीन चलने वाली रूढ़िवादिता के साथ-साथ सांस्कृतिक तथा सामाजिक चेतना जगाने वाले अनेक विचारों से स्वयं को प्रभावित पाते हैं। उनके बाल मन में विभिन्न चिंताओं तथा प्रश्नों का एक गहन जाल बिछा होता है, जिससे उनकी अभिव्यक्ति तथा सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसी लिए बच्चों के जीवन में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। शिक्षक समाज तथा परिवार के मध्य एक सेतु का कार्य करते हैं तथा बच्चों को अज्ञानता के दल-दल से निकाल कर ज्ञान की मजबूत धरा पर खड़ा करते हैं।
‘अल्बर्ट आइंस्टीन’ ने कहीं लिखा भी था कि “छात्रों में रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान के प्रति आनंद जगाना, शिक्षक की सबसे बड़ी कला है। शिक्षा, तथ्यों को सीखना नहीं, बल्कि मन को सोचने का प्रशिक्षण देना है।” यह सौ प्रतिशत सही बात है कि अच्छे शिक्षक द्वारा यदि बच्चे अच्छे संस्कार सीखते हैं तो उनके मन-मस्तिष्क में अपराधों तथा कुत्सित विचारों का कोई स्थान नहीं रहता है। वे सभ्य नागरिक तथा देशभक्त बनकर देशहित में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, जिसके दूरगामी परिणाम देश की पीढ़ियों का भविष्य निर्धारित करते हैं।
मैं कहना चाहूॅंगी कि शिक्षक ही समाज का दर्पण होता है। यदि किसी देश का शिक्षक छात्रों को सकारात्मकता के साथ हर परिस्थिति का सामना ईमानदारी से करना सिखाता है तो उस देश की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता है।