डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी (राजस्थान)
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भक्ति, संस्कृति, और समृद्धि का प्रतीक ‘हिंदी’ (हिंदी दिवस विशेष)…
प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य ,सामाजिक संरचना और संस्कृति में हिंदी भाषा का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यापक है। हिंदी भाषा ने अखंड भारत की आत्मा में भक्ति, संस्कृति और समृद्धि को अक्षुण्ण बनाए रखा है। महात्मा गांधी ने कहा था,- “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है।”
भाषा हमें जोड़ती है, हिंदी भाषा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कितना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, यह हम सभी जानते हैं। आधुनिक समय में हिंदी भाषा ने भारतीय लोकतंत्र के चहुँमुखी विकास में जो अहम् भूमिका निभाई है, उसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
हिंदी भाषा का योगदान अनेक स्तरों पर रहा है। यह सिर्फ भाषाई माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय समाज की आत्मा को जोड़ने वाला सेतु भी है, जो धर्म, संस्कृति और समृद्धि के विकास में सहायक सिद्ध हुआ है।
🔹हिंदी भाषा का भक्ति काल में योगदान
हिंदी भाषा और भक्ति आंदोलन का अनन्य संबंध भारतीय समाज के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को नया रूप देने में महत्वपूर्ण रहा है। मध्यकालीन भारत में जब भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा, तब हिंदी साहित्य ने इस आंदोलन को एक व्यापक मंच प्रदान किया। संत-कवियों जैसे- कबीर, तुलसीदास और सूरदास ने हिंदी कविता के माध्यम से आम जनता तक धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार किया।
कबीर दास के दोहे ने सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों की आलोचना की। उन्होंने सरल हिंदी में लिखकर साधारण मनुष्य को ईश्वर की भक्ति की ओर आकर्षित किया। तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ के माध्यम से राम की भक्ति को ऐसी भाषा में प्रस्तुत किया, जो हर वर्ग के लोगों के लिए समझने योग्य थी। सूरदास की भक्ति शैली में कृष्ण के प्रति उनका अनुराग भक्तों में नई रूह फूंकता है।
इन कवियों ने हिंदी भाषा का उपयोग करके न केवल अपने काव्य को सजीव बनाया, बल्कि एक विशेष सांस्कृतिक संवाद की भी रचना की। इनके लेखन में आध्यात्मिकता के साथ-साथ सामाजिक समरसता का भी बोध होता है, जो भक्ति को सर्वसुलभ बनाता है।
भक्ति काल के दौरान रचित इन ग्रंथों ने भारतीय साहित्यिक धरातल पर यह सिद्ध किया कि हिंदी भाषा में गहरी भावनात्मक और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति की जा सकती है। इस भाषा के माध्यम से लिखे गए ग्रंथ सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए सभी जातियों और समुदायों के बीच मानवीय संवेदना का संचार करते हैं।
हिंदी भाषा और भक्ति आंदोलन ने मिलकर भारतीय आध्यात्मिकता की एक नयी धारा प्रवाहित की, जिसने आम जनता के हृदय में धर्म और अध्यात्म के प्रति गहरी आस्था को जगाया एवं समाज के हर वर्ग को आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग दिखाया। यह भाषा न केवल एक साधन बनी, बल्कि एक ऐसा पुल भी बनी जिसने विभिन्न सांस्कृतिक व सामाजिक समुदायों को आपस में जोड़ा।
🔹संस्कृति उत्थान में हिंदी का स्थान
हिंदी भाषा, भारत की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। इस भाषा ने विभिन्न सांस्कृतिक धाराओं के बीच एक सेतु का काम किया है, जिससे अनेक भाषाई समुदायों के बीच आपसी समझ और तालमेल बढ़ा है।
हिंदी ने अपनी व्यापक पहुँच और सरलता के माध्यम से न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि यह देश के विभिन्न सामाजिक और आर्थिक स्तरों पर जुड़ने का भी एक जरिया बनी है। उदाहरण के लिए- हिंदी फिल्म संगीत और नाटकों ने भारतीय सिनेमा और रंगमंच को एक नयी पहचान दी है, जिससे यह वैश्विक पटल पर प्रभावशाली रूप में उभरी है।
हिंदी भाषा के माध्यम से ही भारतीय उत्सवों और परंपराओं का प्रचार-प्रसार होता है। चाहे दिवाली हो, होली हो या दुर्गा पूजा, हर उत्सव के गीत, कविताएं और कहानियाँ हिंदी में संवादित होती हैं, जिससे देश के विभिन्न कोनों में बसे लोगों के बीच सांस्कृतिक एकता का निर्माण होता है। इस भाषा ने लोक कलाओं और परंपरागत नृत्य रूपों को भी एक नया आयाम दिया है, जिससे यह सभी कला रूप अधिक लोगों तक पहुँच सके।
हिंदी के महत्वपूर्ण योगदान में एक बात यह भी कि शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भी इसकी भूमिका अपरिमेय है। शैक्षिक पुस्तकें, शोध पत्र और विज्ञान संबंधी जानकारी का हिंदी में अनुवाद और प्रसार ने भारतीय विद्यार्थियों को उनकी भाषा में ज्ञान प्राप्ति की सुविधा प्रदान की है।
कह सकते हैं कि हिंदी भाषा ने भारतीय संस्कृति को एक नयी दिशा और गति प्रदान की है, जिससे यह भाषा केवल संवाद का ही नहीं, बल्कि ज्ञान और विकास का भी प्रमुख साधन बन गई है।
🔹आर्थिक समृद्धि में हिंदी की भूमिका
भारतीय आर्थिक विस्तार में हिंदी भाषा का योगदान अद्वितीय है। हिंदी, जो भारत की राजभाषा के साथ-साथ जन-जन की भाषा भी है, ने न केवल साहित्यिक और शैक्षिक क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, बल्कि व्यापार, प्रौद्योगिकी और जनसंचार में भी अपना एक विशेष स्थान बनाया है।
आधुनिक भारत में हिंदी व्यापारिक जगत में एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरी है। बड़े व्यापारिक संगठन और बहुराष्ट्रीय संस्थान भारत में अपने व्यापार को विस्तार देने के लिए हिंदी को अपना रहे हैं। इससे न केवल उत्पादन और बिक्री में वृद्धि हुई है, बल्कि ग्राहक संतुष्टि और छवि की विश्वसनीयता में भी बढ़ोतरी हुई है। यह भाषा का प्रभाव ही है कि आज हिंदी भाषी क्षेत्रों में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा तीव्र हुई है और नए उद्यमों की स्थापना को प्रोत्साहन मिला है।
इसके अलावा डिजिटल युग में हिंदी की उपयोगिता और भी बढ़ी है। अंतरजाल पर हिंदी की सामग्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह सोशल मीडिया, ब्लॉगिंग, ई-कॉमर्स और ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्रों में प्रमुखता से उपयोग की जा रही है। इससे हिंदी भाषी उपयोगकर्ताओं की बड़ी तादाद में जुड़ाव और संवाद सुगम हो रहा है, जो सामाजिक और आर्थिक विकास के नए आयामों को खोल रहा है।
विज्ञापन और मीडिया जगत में भी हिंदी की प्रधानता स्पष्ट दिखाई देती है। टेलीविजन, रेडियो और समाचार पत्रों में हिंदी का व्यापक उपयोग होता है, जो व्यापक जनसंख्या तक पहुँचने में सहायक होता है। हिंदी भाषा के इस प्रयोग से विज्ञापन अभियान अधिक प्रभावी और समझ में आने योग्य बनते हैं, जिससे उत्पादों की बिक्री में सहायता मिलती है।
🔹धार्मिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
धार्मिक और सामाजिक संदर्भ में भी देखा जाए तो हिंदी ने एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस भाषा ने न केवल धार्मिक शिक्षाओं का प्रसार किया है, बल्कि सामाजिक चेतना को भी सशक्त बनाया है। कठिन संस्कृत भाषा में रचे गए धार्मिक ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद करके विभिन्न समुदायों तक ये शिक्षाएं पहुँचाई गयी हैं, जिससे उनके जीवन में नयी दिशा और सोच का संचार हुआ है। उदाहरण के तौर पर तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’
(हिंदी की ही अवधी उपभाषा में रचित) काव्य ने राम की भक्ति को घर-घर में पहुँचाया। यह ग्रंथ न केवल एक धार्मिक पाठ के रूप में प्रभावी रहा है, बल्कि इसने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में आदर्श व्यवहार के मानदंड स्थापित किए हैं। इसी तरह, ‘भगवद गीता’ के सरल हिंदी अनुवाद ने इसे अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाया, जिससे आम आदमी भी इसके गहरे दार्शनिक संदेशों को अपने जीवन में उतार सका।
सामाजिक आंदोलनों में भी हिंदी ने एक अद्वितीय भूमिका निभाई है। चाहे वह गांधी जी का खादी और स्वदेशी आंदोलन हो या फिर भूदान आंदोलन। हिंदी भाषा ने संदेशों को सरलता से प्रसारित करने में मदद की। गांधीजी का नारा ‘करो या मरो’ और विनोबा भावे का संदेश “जो जमीन के मालिक हैं, वे जमीन दान करें”- ये सभी हिंदी में व्यक्त किए गए थे, जिससे इन आंदोलनों की पहुँच और प्रभाव काफी व्यापक हुआ।
कहने का तात्पर्य है कि हिंदी ने विभिन्न वर्गों के बीच एकता और सहयोग की भावना को मजबूत किया है। यह भाषा सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक बनकर उभरी है, जो भारत के विविध सामाजिक और धार्मिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हिंदी भाषा और इसके साहित्य ने समय के साथ समाज में जड़ें गहरी की हैं और इसके प्रसार ने भारतीय संस्कृति को एक नई दिशा और नई ऊर्जा प्रदान की है।