दिल्ली
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आखिरकार जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की धूप खिल ही गई, ५ साल बाद केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर को निर्वाचित सरकार मिल गई और उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। २०१९ में अनुच्छेद ३७० को निरस्त किए जाने के बाद केन्द्र शासित प्रदेश में यह पहली चुनी हुई सरकार है, जो नई उम्मीदों के नए दौर का आगाज है। उमर अब्दुल्ला पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन यह पारी हर तरह से खास है। नई सरकार के मुखिया के तौर पर सामने आम लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कठिन चुनौती भी है। जनता ने विकास और शांति की आकांक्षा के साथ दिल खोल कर उम्मीदों की सरकार चुनी है। घाटी में दशकों तक अब्दुल्ला परिवार के शासन के अनुभव के मद्देनजर घाटी के लोगों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर भरोसा जताया। तमाम ऊहापोह, सुरक्षा चुनौतियों तथा विदेशी दखल की तमाम आशंकाओं को निर्मूल करते हुए जम्मू-कश्मीर के जनमानस ने स्पष्ट सरकार बनाने का जनादेश दिया है। इस भूमिका तक पहुंचाने में भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास महत्वपूर्ण रहे हैं। कश्मीर में विकास, पर्यटन में भारी वृद्धि, शांति एवं सौहार्द का वातावरण बनना ऐसे ही प्रयासों की सार्थक निष्पत्ति है। नई सरकार को विकास की चल रही योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए आतंकमुक्त कश्मीर के संकल्प को मंजिल तक पहुंचाना होगा।
जम्मू एवं कश्मीर में लोकतांत्रिक सरकार का गठन अनेक दृष्टियों से न केवल राजनीतिक दशा-दिशा स्पष्ट करेगा, बल्कि राज्य के उद्योग, पर्यटन, रोजगार, व्यापार, रक्षा, शांति आदि नीतियों तथा राज्य की पूरी जीवन-शैली व भाईचारे की संस्कृति को प्रभावित करेगा। बहरहाल, ऐसे में नवनिर्वाचित सरकार और केंद्र का दायित्व है कि घाटी के लोगों ने जिस मजबूत लोकतंत्र की आकांक्षा जताई है, उसे पूरा करने में भरपूर सहयोग करें। एक समय राज्य में मतदाता डर कर मतदान करने हेतु नहीं निकलते थे, पर इस बार मतदाता निर्भीकता के साथ मतदान करने निकले। जनता ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के संकल्प को सकारात्मक समर्थन दिया है। यद्यपि, लोकसभा चुनाव में कॉन्फ्रेंस को कामयाबी नहीं मिल पायी थी, लेकिन जनता ने उन्हें राज्य में सरकार चलाने का स्पष्ट जनादेश दिया है।
दूसरी ओर इस भारी मतदान व स्पष्ट बहुमत का एक निष्कर्ष यह भी है कि लोग घाटी में शांति और सुकून, अमन एवं विकास, सौहार्द एवं सद्भावना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर प्रयास करना होगा कि इस क्षेत्र में शांति के साथ विकास की नई बयार चले, जिसमें आम नागरिक खुद को सुरक्षित अनुभव करते हुए राष्ट्रीय विकास की धारा के साथ-साथ कदमताल कर सके।
निश्चित ही उमर के सामने चुनौतियां बड़ी हैं। चुनाव के दौरान अनुच्छेद ३७० की वापसी की मांग पर कड़ा रुख अपनाने वाले उमर ने चुनाव नतीजे आने के बाद इस मसले पर अपना रुख नरम कर लिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं, जिनमें इस मुद्दे पर जोर देने का किसी को कुछ फायदा होगा। उम्मीद बढ़ाने वाली बात यह भी है कि चुनावी कड़वाहट को पीछे छोड़ते हुए सभी पक्षों ने सहयोग का रुख अपनाने का संकेत दिया है। न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने नई सरकार के साथ मिलकर काम करने का संकेत दिया है, बल्कि खुद उमर ने भी टकराव की बजाय समझ एवं सकारात्मकता से शासन करने की मंशा जताई है, जो जहां जम्मू-कश्मीर की जनता के हित में है वही उमर की राजनीतिक सूझबूझ, परिपक्वता एवं विवेक का परिचायक है। उमर अब्दुल्ला यह संकेत दे रहे हैं कि वह सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। उमर को हर कदम सावधानी से उठाने होंगे, ताकि कोई भी स्थिति गठबंधन के घटक दलों में मतभेद एवं टकराव का कारण न बन जाए। उमर के एक-एक फैसले पर कैबिनेट और उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र का मसला सामने आ सकता है। ऐसे में देखना होगा कि इन सबके बीच जम्मू-कश्मीर की नई सरकार उमर के नेतृत्व में कितने सधे कदमों से आगे बढ़ती है, क्योंकि सरकार को अपना दायित्व इस बात को ध्यान में रखकर निभाना होगा कि केंद्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल के पास व्यापक अधिकार हैं।
इस चुनाव में मतदाताओं का खासा उत्साह लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूती दे रहा है। कहीं न कहीं जनता ने स्पष्ट संदेश भी दिया कि वे हिंसा से छुटकारा चाहते हैं। इसलिए जम्मू-कश्मीर में नई सरकार को जनाकांक्षाओं को पूर्ण करते हुए बदली हुई शासन व्यवस्था के साथ भी साम्य स्थापित करना है। इस बात का विश्वास किया जाना चाहिए कि कम से कम सीमावर्ती घाटी की संवेदनशीलता को देखते हुए इस केंद्र शासित प्रदेश में वैसा टकराव देखने को नहीं मिलेगा, जैसा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और एलजी के बीच देखने को मिलता है। उम्मीद करें कि यथाशीघ्र पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की विसंगतियां दूर की जा सकेंगी।
राज्य में अलगाव से बाहर निकलने का नया विश्वास जगा है। पाकिस्तानी आतंकी सोच के नुकसान को प्रांत ने झेला और महसूस किया है। गुलाम कश्मीर के लोगों की दुर्दशा को देखा जा रहा है। इसी लिए इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर के लोगों ने लोकतान्त्रिक सरकार बनायी है, जो शांति और विकास के नए द्वार उद्घाटित करते हुए युवाओं के लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करे एवं आतंक मुक्ति का एक नया अध्याय रचे। ऐसा होना ही नई सरकार एवं उमर के नेतृत्व की सार्थकता है।