प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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मेरी सुधि लीजो अविकारी शिव!l
मेरी सुधि लीजो अविकारी शिव!
अंतर मन चीख-पुकार करें,
है कौन करे भव पार मौन।
सब दूर करो लाचारी शिव!
मन मेरा बना दो कमल पत्र,
ना कोई असर तुम में खोई।
बह जाए जल संसारी शिव!
तुम सुजन-सयान भये प्रभुवर,
हम हीन लसित भव पाप दीन।
दु:ख-दैन्य हरो दातारी शिव!
शरणागति का आधार लिया,
हे! प्रभो विनय है जगत विभो।
कह दो विनती स्वीकारी शिव!
तुम कल्प-तरु हो भक्तों के,
और भक्ति संग देते मुक्ति।
हो भक्तों के हितकारी शिव!
सागर संसार का है गहरा,
न बूझे कुछ न पार सूझे।
माया की माया भारी शिव!
पा के जीवन के सुख-वैभव,
होते रोगी अतिशय भोगी।
जीवों के तारण हारी शिव!
सदियों से तुमने मात्र दिया,
तज भोग बने आधार योग।
न तुम-सा है करतारी शिव!
हो मोह-निशा में घिरा जीव,
तुम बनो गुरु आध्यात्म बनो।
कटते भव-बंधन भारी शिव!
कर्मों के लेख मिटा दो प्रभु,
दे अभय दान कर दो निर्भय।
हे! निर्मल कलिमल हारी शिव!
जग कोलाहल में नाद हो तुम,
हो बजते मधुर नटराज शिवे!
सुर-ताल-छंद आधारी शिव!
शिव-चिंतन करते चिता सजे,
सब अहम फूके व फूके वहम।
तन-राख है तुम पे डारी शिव!
तन-मन की चेत धरूं तुममें,
कुछ दो तुम अपनापन दे दो।
चुकवा दो जगत उधारी शिव!
शिव शब्द बनो नि:शब्द बनो,
बन वंदन मस्तक का चंदन।
दे दो भक्ति शुभकारी शिव!
‘शिवदासी’ जान कृपा कीजो,
शिव सिन्धु-दया धारक इन्दु।
उपकार करो उपकारी शिव!
मेरी सुधि लीजो अविकारी शिव!
मेरी सुधि लीजो अविकारी शिव॥