शीला बड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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“क्या बात है माँ साहब, आज बड़ी टेंशन में दिख रही हो ?” रविवार के हाट बाजार में पास की सब्जी की दुकान पर बैठे आदमी ने सब्जी वाली वृद्धा से पूछा।
“हाँ भैया, अभी तक सब्जी की बोनी भी नहीं हुई है।”
“चिंता मत करो माँ साहब, जो हमारी किस्मत में है, वह हमसे कोई नहीं छीन सकता।”
तभी एक लड़का आता है और पूछता है, “माँ साहब, यह प्याज कैसे दिए ?”
“५० ₹ किलो।” वृद्धा बोली।
“४० के लगाओगे क्या ?
“कितने लोगे बेटा ?”
“५ किलो।” लड़का बोला।
“१० ₹ का धनिया और १० ₹ की हरी मिर्ची भी दे दो।”
वृद्धा ने सारे प्याज तोल दिए। शाम होते-होते सारी सब्जी ही बिक गई और पास वाली दुकान पर भी ग्राहक आने लगे।
चेहरे पर मंद मुस्कान लिए साड़ी के कपड़े की पोटली बनाते हुए बोली, “भैया, सही कहा तुमने कि, जो हमारी किस्मत में है, वह जरूर मिलेगा। सब्जी बिक गई। ठंड पड़ रही है तो मुझे पोती के लिए स्वेटर लेकर जाना है। स्वेटर देखकर वह खुश हो जाएगी, चलती हूँ।”
“ठीक है माँ साहब, अब अगले हाट में मिलते हैं राम-राम।”
परिचय-शीला बड़ोदिया का साहित्यिक उपनाम ‘शीलू’ और निवास इंदौर (मप्र) में है। संसार में १ सितम्बर को आई शीला बड़ोदिया का जन्म स्थान इंदौर ही है। वर्तमान में स्थाई रूप से खंडवा रोड पर ही बसी हुई शीलू को हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान है, जबकि बी.एस-सी., एम.ए., डी.एड. और बी.एड. शिक्षित हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत होकर आप सामाजिक गतिविधि में बालिका शिक्षा, नशा मुक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी को समझाओ अभियान, पेड़ बचाओ अभियान एवं रोजगार उन्मुख कार्यक्रम में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, संस्मरण, गीत और जीवनी है। प्रकाशन के रूप में काव्य संग्रह (मेरी इक्यावन कविता) तथा १५ साझा संकलन में रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। इनको मिले सम्मान व पुरस्कार में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सम्मान (साझा संकलन), विश्व संवाद केंद्र मालवा (मध्य प्रदेश) द्वारा सम्मान, कला स्तम्भ मध्य प्रदेश द्वारा सम्मान, भारत श्रीलंका सम्मिलित साहित्य सम्मान और अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान आदि हैं। शीलू की विशेष उपलब्धि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में रचना का शामिल होना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य में उत्कृष्ट लेखन का प्रयास है। मुन्शी प्रेमचंद, निराला, तुलसीदास, सूरदास, अमृता प्रीतम इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज गुरु हैं। इनका जीवन लक्ष्य-हिन्दी साहित्य में कार्य व समाजसेवा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी रग-रग में बसी है।”