हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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वर्ष पुराना गया, और नया आ गया,
वक्त गुजर कर कभी, मिल न सका जो गया।
वर्ष यही आएगा, एक सदी बाद ही,
कौन रहे क्या पता, एक सदी बाद भी।
लोग समझते नहीं, स्वार्थ नहीं त्यागते,
नीर पवन दे हमें, सृष्टि रचे राहतें।
साॅंस पवन से चले, प्यास मिटे नीर से,
कार्य करें अंग पर, मन न सजे धीर से।
तीर्थ करे मान-सम्मान, बिना ज़िन्दगी,
तप न तपस्या रहे, ध्यान न संजीदगी।
सूर्य किरण भोर में, चन्द्र किरण रात में,
वक्त कदर बिन रहा, जन्म ‘से’ जो साथ में।
ईश रचें सृष्टि को, मान रहे सृष्टि का,
वक्त उन्हीं ने रचा, साथ सभी के रहा।
ग्रंथ भरे ज्ञान से, मान करे जिन्दगी,
पंथ सुलग क्यों रहे, दर्द सहे बन्दगी।
प्रीत बिना प्यार की, लोग करें कामना,
भाव रहें द्वेष के, और कहें भावना।
मन न मिलाते कभी, वास वहीं देव का,
और कहें देखने, को न मिलें देवता।
लोग समझ लें यहाॅं, देव बिना कुछ नहीं,
प्रीत तपस्या सभी, भाव परखते वही।
कौन किरण दे भला, कौन पवन दे रहा,
जो न कभी दिख सके, एक वही देवता॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।