दिल्ली
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राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ (२५ जनवरी) विशेष..
भारत में ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ प्रत्येक वर्ष २५ जनवरी को मनाया जाता है। विश्व में भारत जैसे सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदान को लेकर कम होते रुझान को देखते हुए इस दिवस को मनाने की आवश्यकता महसूस हुई और पहली बार इसे वर्ष २०११ में मनाया गया। इसके पीछे निर्वाचन आयोग का उद्देश्य था कि देश में अधिकतम मतदान को प्रोत्साहन दिया जाए। ‘मतदाता बनने पर गर्व है, मतदान को तैयार हैं’ जैसे नारों के साथ मतदान दिवस मनाने का मुख्य कारण है कि मतदान का महत्व बताया जाए ताकि लोग जागरूक हों और सही उम्मीदवार को चुनें। ऐसा करके ही लोकतंत्र को मजबूती दी जा सकती है।
पिछले कुछ वर्षों में इसने मतदान के अधिकार के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
किसी भी राष्ट्र के जीवन में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण घटना होती है। यह एक यज्ञ होता है, लोकतंत्र प्रणाली का सबसे मजबूत पैर होता है। राष्ट्र के प्रत्येक वयस्क के संविधान प्रदत्त पवित्र मताधिकार के प्रयोग का एक दिन। इसलिए इस दिन भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने राष्ट्र के प्रत्येक चुनाव में भागीदारी की शपथ लेनी चाहिए, क्योंकि भारत के प्रत्येक व्यक्ति का मत ही देश के भावी भविष्य की नींव रखता है और उन्नत राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी निभाता है। सत्ता के सिंहासन पर अब कोई राजपुरोहित या राजगुरु नहीं बैठता, अपितु जनता तिलक लगाकर नायक चुनती है, लेकिन जनता तिलक किसको लगाए इसके लिए सब तरह के साम-दाम-दंड अपनाए जा रहे हैं। हर राजनीतिक दल अपने लोक-लुभावन वायदों एवं घोषणाओं को ही गीता का सार व नीम की पत्ती बता रहे हैं, जो सब समस्याएं मिटा देगी तथा सब रोगों की दवा है, लेकिन ऐसा होता तो आजादी के अमृतकाल तक पहुंच जाने के बाद भी देश गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार, अफसरशाही, बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य समस्याओं से नहीं जूझता दिखाई देता। ऐसी स्थिति में मतदाता अगर बिना विवेक के आँख मूंदकर मत देगा तो परिणाम उस उक्ति को चरितार्थ करेगा कि ”अगर अंधा अंधे को नेतृत्व देगा तो दोनों खाई में गिरेंगे।“ इसलिए यह दिवस मतदाता को जागरूक करने के साथ प्रशिक्षित भी करता है।
भारतीय लोकतंत्र दुनिया का विशालतम लोकतंत्र है और समय के साथ परिपक्व भी हुआ है। बावजूद इसके लोकतंत्र अनेक विसंगतियों एवं विषमताओं का भी शिकार है। मुख्यतः चुनाव प्रक्रिया में अनेक छिद्र हैं। सबसे बड़ा छिद्र चुनावों की निष्पक्षता एवं पारदर्शिता को लेकर है। खरीद-फरोख्त, नशा, मतदाताओं को लुभाने एवं आकर्षित करने का आरोप भी लोकतंत्र पर बड़े दाग हैं। चुनाव सुधारों की तरफ हम चाह कर भी बहुत तेजी से नहीं चल पा रहे हैं। आयोग जैसी बड़ी और मजबूत संस्था की उपस्थिति के बाद भी चुनाव में धनबल, बाहूबल एवं सत्ताबल का प्रभाव कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है। ये तीनों ही हमारे प्रजातंत्र के सामने सबसे बड़ा संकट है। इन सबसे मुक्ति के लिए मतदाता की जागरूकता की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। लोकतंत्र में स्वस्थ मूल्यों को बनाए रखने के साथ उसमें सभी मतदाताओं की सहभागिता सुनिश्चित करना जरूरी है। इसके लिए चुनाव आयोग का आरईवीएम के प्रयोग का प्रस्ताव सैद्धांतिक तौर पर एक सराहनीय एवं जागरूक लोकतंत्र की निशानी है, क्योंकि आजादी के बाद से ही जितने भी चुनाव हुए है, उनमें लगभग आधे मतदाता अपने मत का उपयोग अनेक कारणों से नहीं कर पा रहे हैं, ऐसा हर चुनाव में होता आया है। उसी के मद्देनजर आयोग द्वारा घरेलू प्रवासियों के लिए आरवीएम का प्रस्ताव एक सूझ-बूझभरा एवं दूरगामी सोच से जुड़ा उपक्रम है। जरूरत है कि राजनीतिक दल ऐसे अभिनव उपक्रम का विरोध करने या अवरोध खड़ा करने की बजाय उसकी अच्छाइयों को स्वीकारते हुए स्वागत करें।
इस बार मतदाता दिवस पर ऐसा एक नया रास्ता बने, जो लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने एवं चुनाव की खामियों को दूर करने के लिए नया सूरज उदित करे और मतदाताओं को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराए।