हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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‘माँ’ दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। मैंने अपनी माँ को नहीं देखा, वह मुझे ४ साल की उम्र में छोड़ कर भगवान के घर चली गई थी, पर माँ को हमेशा अपने आसपास ही महसूस किया है। माँ का वात्सल्य, स्नेह, लाड़-प्यार, लोरी कहानी, मानो सभी एहसास से अपने आसपास में पाता हूँ। मेरी माँ का आशीष सदैव बना हुआ है। हर एक परिस्थिति में कितनी भी कठिनाई आ जाए, जब तक माँ का आशीर्वाद है, तो सब संकट अपने-आप मिट जाते हैं। माँ को गुज़रे ४० साल से ज्यादा हो गए, पर हमारा परिवार खुशहाल है, तो उन्हीं के आशीर्वाद से ही सम्भव है।
माँ तो भगवान के लिए भी सबसे प्यारी ही है। मेरी माँ आज भी संतरगी चमकते आसमान में तारा बनकर मुझे मेरे ख्वाबों को हकीकत में बना रही है। आज भी जब भटक जाता हूँ, तो राह वही दिखाती है, मेरा हाथ पकड़ कर मार्गदर्शन करती है।
माँ हमेशा अपने बच्चों के लिए ममतामयी होती है, मैंने यही अनुभव हमेशा किया। बचपन में मेरे घर के आसपास मेरे दोस्तों के यहाँ जब जाता था, तो उन्हें उनकी माँ प्यार से खाना खिलाती थी, नहलाती थी और तैयार कर शाला ले जाती थी। स्नेह व ममता से वह अपने बच्चों के साथ चलकर हौसला बढ़ाती थी। तब मेरी आँखों में आँसू आ जाते थे। रोता था कि मुझे यह प्यार क्यों नहीं मिला…? कितना बदनसीब हूँ, कि माँ मुझे बचपन में छोड़ कर दुनिया से चली गई। कितना अकेला हूँ कि मुझे यह प्यार और माँ के आँचल की छाँव तक नहीं नसीब हुई, पर जब आज देखता हूँ कि इतने सालों बाद भी वह मुझे आसमान से देखती हैं, मेरा मार्गदर्शन करती है तो लगता है कि माँ सही में बच्चों की सच्ची सारथी होती है।