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पेड़ सिखाता है नम्रता

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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माटी के अनमोल तत्व हमेशा सीख देते हैं कि एक बीज अंकुरित होता है, फिर मिट्टी में वह पौधा अपनी जड़ों को मजबूत करके फैलता है। मिट्टी में अपनी मजबूत पकड़ का वह परिदृश्य सभी रिश्तों में हमेशा से अपनेपन के रूप में नज़र आता है। जीवन का सार भी यही है कि मनुष्य को हमेशा से नम्र होना चाहिए।
झुकना स्नेह व वात्सल्य का मजबूत आधार होता है। क्रोध, माया, लोभ, लालच व अन्य नकारात्मक विचारों से मनुष्य ग़लत दिशा में चला जाता है और वही उनके लिए जिंदगी खराब करने वाला क़दम होता है। ज्यादा ऊँचाई भी ठीक नहीं होती है। खजूर का पेड़ इतना ऊँचा होता है, पर वह किसी का सहारा नहीं होता है। न किसी को छाया मिलती है और न जल्दी फल तो फिर ऐसा पेड़ किस काम का है ? पेड़ों में आम देखो, कितना विशाल व घना होता है। २ पल उसकी छाया में थका-हारा मनुष्य व जीव-जन्तु विश्राम कर लेते हैं और भूख लगे तो उसके फल भी खा लेते हैं। इतना ही नहीं, ईंधन या हवन के लिए सूखी लकड़ियों को ले जाकर अपने हिसाब से काम में लेते हैं। बस यही फर्क है एक लम्बे व बड़े आकाश चूमते हुए पेड़ और एक जमीन से जुड़े व झुके हुए पेड़ में।
कहने का अर्थ यह है कि अपनों में अपनापन होना बहुत जरूरी है। सभी के प्रति एक भाव रहना चाहिए। इसलिए हर मनुष्य को भी हमेशा से एक-दूसरे के आदर-सत्कार व अपने संस्कारों के अनुरूप नम्रता का भाव रखना चाहिए। इस भाव से ही सभी में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होगी। झुका हुआ पेड़ हमें यही सीख देता है, कि हमेशा अपने अन्दर नम्रता को बनाए रखें।