दिल्ली
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पेरिस में हुए ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (एआई एक्शन समिट) सम्मेलन ने जहां दुनिया के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के महत्व को उजागर किया, वहीं यह भी साफ कर दिया कि इस मामले में होड़ के बावजूद सभी देशों का आपसी तालमेल बनाए रखते हुए सावधानी से आगे बढ़ना जरूरी है। एआई से बदलती दुनिया के चमत्कार वरदान से कम नहीं हैं, लेकिन जुड़ी चुनौतियाँ एवं खतरे इसे अभिशाप में भी बदल सकते हैं। बहुत आवश्यक है कि इसके उपयोग के संदर्भ में कोई वैश्विक ढांचा एवं नियंत्रण का केन्द्र एवं नीति बने, क्योंकि खतरे किसी से छिपे नहीं हैं। अभी एआई का उपयोग अपने प्रारंभिक चरण में ही है, लेकिन उससे पैदा होने वाली कई चुनौतियों एवं खतरों ने सिर उठा लिया है। इस नई तकनीक से जीवनशैली, शिक्षा, चिकित्सा, युद्ध, सेना, शासन-प्रशासन, चुनाव, व्यापार, विचार आदि में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। भारत इसे लेकर बहुत उत्साहित है और दुनिया में एआई का सबसे बड़ा केन्द्र बनने को भी तैयार है। यही कारण है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के साथ इस शिखर बैठक की सह-अध्यक्षता की, बल्कि अगली शिखर बैठक की मेजबानी की पेशकश कर बता दिया कि भारत इस पहल को कितनी गंभीरता से लेता है।
भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर होते हुए तकनीकी विकास की दृष्टि से भी सफलता के नए झंडे गाड रहा है। एआई को लेकर भारत की सोच सकारात्मक एवं विकासमूलक है, इसी लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह सही कहा कि इस तकनीक में दुनिया को बदलने की ताकत है, लेकिन अमेरिका की कुछ बड़ी तकनीकी कंपनियों ने सूचना संसार में अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया है। उनके एकाधिकार और उनकी मनमानी से निपटना विश्व के तमाम देशों के लिए मुश्किल हो रहा है। यदि इसी तरह का एकाधिकार एआई कंपनियों ने भी स्थापित कर लिया तो फिर समस्या गंभीर हो जाएगी। सबसे अधिक समस्या विकासशील और निर्धन देशों को होगी, जो पहले से ही चुनिंदा तकनीकी कंपनियों के वर्चस्व तले दबी हुई है। इस तकनीक का मनमाना इस्तेमाल न होने पाए, इसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रभावी कदम उठाने होेंगे।
भारत एआई की चुनौतियों एवं खतरों को लेकर सतर्क है, क्योंक प्रस्तुत चुनौतियाँ बहुआयामी हैं और लगातार विकसित हो रही हैं। उदाहरण के लिए डीपफेक, जो डिजिटल मीडिया हैं-वीडियो, ऑडियो और चित्र-जिन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके संपादित और हेर-फेर किया जाता है, हाइपर-रियलिस्टिक डिजिटल मिथ्याकरण को शामिल करते हैं। इसका संभावित रूप से प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने, सबूत गढ़ने और लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास को कम करने के लिए उपयोग किया जा सकता है, जबकि डीपफेक का इस्तेमाल चुनावों जैसे कुछ मामलों में किया गया है। एआई से जुड़े अन्य जोखिम भी हैं। इनमें गोपनीयता, पूर्वाग्रह, पारदर्शिता, जवाबदेही और दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के मुद्दे शामिल हैं। भारत सरकार इन मुद्दों को सलाह और विनियमों के माध्यम से नियोजित एवं नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है जो पारदर्शिता, सामग्री मॉडरेशन, सहमति तंत्र और डीपफेक पहचान पर जोर देते हैं, ताकि जिम्मेदार एआई तैनाती सुनिश्चित हो और चुनावी अखंडता की रक्षा हो सके। यह एक सतत प्रयास है और जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, इन चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक मजबूत तंत्र के विकास के साथ सक्षम होने की अपेक्षा रहेगी। एआई विकसित होता रहेगा, नये-नये करिश्माई एवं चमत्कारी आयाम उससे जुड़ते रहेंगे और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह ऐसे तरीके से हो, जो सभी के लिए सुरक्षित, नैतिक और लाभकारी हो।
आवश्यक बुनियादी ढांचे, हार्डवेयर और क्लाउड कंप्यूटिंग क्षमताओं के विकास में सहायता के लिए निवेश महत्वपूर्ण है। सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग से आवश्यक पूंजी जुटाई जा सकती है। यह संयुक्त प्रयास एआई नवाचार, आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा दे सकेगा और जिससे भारत एआई क्रांति में अग्रणी बन दुनिया का नेतृत्व कर सकेगा। इसी पहलू को यह सम्मेलन रेखांकित करता है, जिसमें नरेंद्र मोदी ने कहा कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस हमारे भविष्य का अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन किसी भी वजह से इसकी ग्रोथ को बेकाबू होने दिया गया तो उसके परिणाम खतरनाक साबित हो सकते हैं।
बेहतर होगा कि केंद्र सरकार एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाकर इस तकनीक को लेकर अपनी प्राथमिकता तय करे। नवाचार में भारत को हर जोखिम को उठाने के लिए स्वयं को सक्षम करना होगा। एआई का समुचित लाभ उठाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। एआई के जरिए वे अनेक काम किए जा सकते हैं, जो अब तक मनुष्य करते रहे हैं, लेकिन यह ध्यान रहे कि उसमें मानवीय संवेदनाएं नहीं होतीं और वह उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर ही किसी नतीजे पर पहुंचती है। यदि डाटा ही सटीक न हो तो नतीजे भी नुकसान पैदा करने वाले हो सकते हैं। इस पर हैरानी नहीं कि अति उन्नत एआई को मानव सभ्यता के लिए संकट के रूप में भी देखा जा रहा है। इस आशंका को निर्मूल साबित करने वाले उपाय करना समय की मांग है और उन पर ज्यादा फोकस करना होगा। इस तरह की तकनीक तभी लाभकारी सिद्ध होती है, जब उसका उपयोग समझदारी, नैतिकता एवं विवेकपूर्ण होता है। ज्यादा जरूरी है उसके दुरुपयोग की आशंकाओं पर प्रभावी ढंग से लगाम लगाने की स्थितियों एवं तंत्र को विकसित करने की। एआई के मामले में ऐसा इसलिए अनिवार्य रूप से करना होगा, क्योंकि यह मानव जीवन को कहीं गहराई से प्रभावित करने की क्षमता रखती है। इसी लिए यह आशंका भी उभरी है कि इसके कारण रोजगार का संकट पैदा हो सकता है। भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नौकरियों पर एआई के प्रभाव को समझने के लिए एक व्यापक, डेटा-समर्थित अध्ययन आवश्यक है। आईएमएफ की एक रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि एआई दुनिया भर में लगभग 40 प्रतिशत नौकरियों को प्रभावित करेगा, कुछ को प्रतिस्थापित करेगा और दूसरों को पूरक करेगा। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एआई अपने उपयोग के विकास के साथ नए प्रकार की नौकरियाँ भी पैदा करेगा।
एआई पहले से ही विनिर्माण से लेकर बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवा, कृषि और शिक्षा तक सभी क्षेत्रों में बदलाव ला रहा है। उदाहरण के लिए शिक्षा क्षेत्र, एआई व्यक्तिगत पाठ्यक्रम, परीक्षण, सीखने के तरीके और वितरण को सक्षम करके भारत के सीखने के परिदृश्य को बदल रहा है। निःसंदेह यह नई तकनीक अवसर बन रही है, तकनीकी विकास का सूरज बनकर नयी समाज संरचना को बल दे रही है।
एआई की तीव्र प्रगति और व्यापक अनुप्रयोग को देखते हुए भारत के लिए अपना स्वयं का एआई सुरक्षा संस्थान स्थापित करना अपेक्षित है। ऐसा संस्थान सुरक्षित और नैतिक एआई प्रथाओं को विकसित करने, अनुसंधान करने और उपयोग में सुरक्षा की संस्कृति को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।