कुल पृष्ठ दर्शन : 17

You are currently viewing स्वामिनी थी जो संसार की

स्वामिनी थी जो संसार की

कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
**********************************************

रचनाशिल्प-रगण २१२-८

थी पली जो कभी, राजसी ठाट से।
राम के साथ वो, शौक से जा रही।

जो कभी भी नहीं, वेदना को सही।
पादुका के बिना, ही चली जा रही।

छोड़ प्रासाद को, संग श्री राम के।
आज माँ जानकी, त्याग में जा रही।

कोमलांगी सिया, थी पली नाज से।
भूमिजा शूल पे, हर्ष से जा रही।

त्याग शाही लड़ी, वो छली-सी सजी।
राम जी की रमा, भी चली जा रही।

जो कभी भी नहीं, थी सही दर्द को।
वो कँटीले पथों, पे बढ़ी जा रही।

थीं किशोरी अजी, कंटकों से घिरी।
देव दुर्दैव से, वो चली जा रही।

स्वामिनी देखिए, पूर्ण संसार की।
कष्ट में भी खुशी से चली जा रही॥