दिल्ली
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विश्व शांति और समझ दिवस (२३ फरवरी) विशेष…
एक शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण समाज के निर्माण, विविध संस्कृतियों, धर्मों और क्षेत्रों के बीच सद्भाव, करुणा और सहयोग की स्थायी भावना की अपेक्षा को आकार देने के लिए हर वर्ष ‘विश्व शांति एवं समझ दिवस’ (२३ फरवरी) विश्व स्तर पर मनाया जाता है। यह अवसर एक अधिक समावेशी और शांतिपूर्ण दुनिया को बढ़ावा देने के लिए दुनिया में सामूहिक जिम्मेदारी का एक मार्मिक अनुस्मारक एवं महा अनुष्ठान है। यह विषय एक ऐसी दुनिया की दिशा में सक्रिय रूप से काम करने के महत्व पर जोर देता है, जहाँ शांति की समझ केवल एक आकांक्षा नहीं;बल्कि हमारे दैनिक जीवन, व्यवहार और बातचीत का एक हिस्सा हो। यह दुनिया में संघर्ष को रोकने के लिए विभिन्न संस्कृतियों और दृष्टिकोणों के लिए सहानुभूति और सम्मान को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है। दुनिया में प्रेम-भाईचारा और शांति को बनाए रखना एवं हिंसारहित दुनिया निर्मित करना भी इसका ध्येय है।
आज जब पूरी दुनिया युद्ध, हिंसा, आतंक एवं क्रूरता से त्रस्त है, तब दुनिया में शांति की समझ पैदा करना पूरी मानव जाति का कर्तव्य है। समाज में समझ से ही शांति स्थापित की जा सकती है। इसके लिए सामूहिक प्रयास करने की आवश्तकता है। इसके विपरीत यदि पूरी दुनिया के लोग एक-दूसरे को घृणा, द्वेष और नफरत की दृष्टि से देखेंगे तो उसका परिणाम युद्ध एवं विनाश के रूप में सामने आएगा। संघर्ष, अविश्वास, गलतफहमी और विद्रोह समाज को बांटता है और उसे एक अन्नत संघर्ष की खाई में धकेल देता है। अविश्वास, अहंकार एवं महत्वाकांक्षाएं समाज को गलतफहमी, विद्रोह, लड़ाई और संघर्ष की ओर ले जाती है। इसलिए समाज में विश्वास और शांति स्थापित करने के लिए सभी मनुष्यों को एक-दूसरे के साथ कंधा मिलाकर सहयोगी के रूप में कार्य करना होगा। यह हमें अपने मतभेदों से परे देखने और सभी के लिए शांति, समृद्धि और कल्याण के सामान्य लक्ष्यों की दिशा में मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
मनुष्य, पशु, पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि सभी जीना चाहते हैं। कोई मरने की इच्छा नहीं रखता। जब कोई मृत्यु चाहता ही नहीं, तो उस पर उसको थोपना कहाँ का न्याय है। शांति, सहजीवन एवं अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग किसी प्राणी को सताते नहीं, मारते नहीं, मर्माहत करते नहीं, बल्कि दूसरे का सहयोग करते हुए उन्नत दुनिया का निर्माण करते हैं। शांति की समझ है स्वयं के साथ सम्पूर्ण मानवता को ऊपर उठाने में, आत्मपतन से बचने और उससे किसी को बचाने में। अशांति अंधेरा है और शांति उजाला है। आँखें बंद करके अंधेरे को नहीं देखा जा सकता। इसी प्रकार अशांति से शांति को नहीं देखा जा सकता। शांति को देखने के लिए अहिंसा, करूणा एवं प्रेम का उजाला आंजने की अपेक्षा है। पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। यूँ तो ‘विश्व शांति’ का संदेश हर युग और दौर में दिया गया है, लेकिन विश्व युद्ध की संभावनाओं के बीच इसकी आज अधिक प्रासंगिकता है। अपनों का साथ स्वर्ग है तो शत्रुओं का साथ नरक। प्रेम व मित्रता की ओर बढ़ना स्वर्ग की ओर बढ़ना है, जबकि घृणा की ओर कदम बढ़ाना अपने नरक को खड़ा करना है। स्वर्ग में रहना है या फिर नरक में, ये चुनाव हमारा अपना है। इस दृष्टि से यह दिन हमारी शांति की समझ को व्यापक बनाता है।
इजराइल और हमास में युद्ध विराम समझौते के बाद दुनिया चाहती है कि रूस एवं यूक्रेन के बीच लम्बे समय से चल रहा युद्ध भी समाप्त हो, यह शांतिपूर्ण उन्नत विश्व संरचना के लिए नितांत अपेक्षित है। ऐसे युद्धों से युद्धरत देश ही नहीं, समूची दुनिया पीड़ित एवं प्रभावित होती है। इस तरह युद्धरत बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला है, जो समूची दुनिया को विनाश एवं विध्वंस की ओर धकेलने देता है। ऐसे युद्धों में वैसे तो जीत किसी की भी नहीं होती, फिर भी इन युद्धों का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देता, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने के साथ बड़ी जनहानि का भी बड़ा कारण बनता है। इन विकराल होती स्थितियों के बीच इस साल ‘विश्व शांति और समझ दिवस’ की ११८वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। इन वर्षों के दौरान पूरी दुनिया ने विश्व शांति और सद्भावना को लेकर लंबा रास्ता तया किया है, वहीं दुनिया भर के लोगों में सद्भावना, शांति और समझ विकसित करने के लिए अभी और लंबा रास्ता तय करना है। उम्मीद है कि इसका नतीजा युद्धों के अंत के रूप में सामने आएगा।
आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक कुचेष्टाओं से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। हिंसा, आतंक एवं अशांति विश्व की ज्वलन्त समस्याएं हैं। अहिंसा एवं शांति ही इन समस्याओं का समाधान है। अहिंसा की शक्ति पर लगी जंग को उतार कर उसकी धार को तेज करने के लिए अहिंसक एवं शांतिपूर्ण समाज रचना की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया में विश्वशांति एवं अहिंसा की स्थापना के लिए प्रयत्नशील हैं। समूची दुनिया भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है, कि एक बार फिर शांति एवं अहिंसा का उजाला भारत करे। कुछ लोग कह सकते हैं-एक दिन विश्व शांति और समझ दिवस मना भी लिया तो क्या हुआ ? लेकिन ऐसे दिवस की बहुत सार्थकता है, उपयोगिता है, इससे अंतर-वृत्तियाँ उद्बुद्ध होंगी, अंतरमन से शांति की समझ को अपनाने की आवाज उठेगी और हिंसा, अशांति, तनाव एवं में लिप्त मानवीय वृत्तियों में शांति की समझ आएगी।