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संकल्प-जरा गौर से तुम सुन लो आतंकियों…

डॉ.नीलम वार्ष्णेय ‘नीलमणि’
हाथरस(उत्तरप्रदेश) 
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जरा गौर से तुम सुन लो आतंकियों मेरी कहानी।
मत भूलो इन दिलों से संसार की प्रीत पुरानी।
तुम मिटा रहे हो जिसको,कुदरत अनमोल निशानीll
जरा गौर से…

आँसू देखो बचपन के खुशियों में तुमने गुजारे,
दूर वो अपने पराये देखे नफरत के अँधेरे।
मुरझाये इन फूलों की कीमत कब तुमने जानीll
जरा गौर से…

न मजहब जाति अपनी,न मुल्क अपना बेगाना,
इन्सानों की इस दुनिया में साँसों का आना-जाना।
तुम जज्बातों में आकर क्यूं मिटा रहे जिंदगानीll
जरा गौर से…

सिंदूर बिन उजड़ी मांगें राखी बिन भईया कलाई,
कितनी रास आती तुमको क्यूं समझ में न आ पाई।
ममता रोती धरती पर,इन्सान की अजब नादानीll
जरा गौर से…

उजड़े हुए धरती के गुलशन क्या फिर से सजा पाओगे,
बिछड़े हुए साथी को नील क्या फिर से मिला पाओगे।
नीति-रीति कुदरत में क्यूं कर रहे तुम शैतानीll
जरा गौर से…

मत भूलो इन दिलों से संसार की प्रीत पुरानी,
तुम मिटा रहे हो जिसको,कुदरत अनमोल निशानी।
जरा गौर से तुम सुन लो,आतंकियों मेरी कहानीll

परिचय-डॉ.नीलम वार्ष्णेय का जन्म १६ सितम्बर को राधाष्टमी के दिन अलीगढ़ में हुआ है। आप शास्त्रीय संगीत में दिल्ली से एम.ए. के साथ ही तबला प्रवीण भी हैं। `नीलमणि` उपनाम लगाने वाली डॉ.वार्ष्णेय ने जमशेदपुर से एचएमबीएस के पश्चात हिन्दी में पी.एच-डी. की है। इनका निवास उत्तर प्रदेश स्थित हाथरस में हैl वर्तमान में आप संगीत कला केन्द्र में प्राचार्य एवं निदेशक पद पर कार्यरत हैं,साथ ही फिल्म,दूरदर्शन,म्यूजिक एल्बम,लेखन,निर्णायक,गीतकार,आकाशवाणी पर भी निरंतर सक्रिय रही हैंआपको अनेक मान-सम्मान,प्रशस्ति-पत्र, स्वर्ण पदक एवं प्रतीक चिन्ह प्राप्त हुए हैंआपकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल, लेख आदि है। इनकी रचनाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैंआपने सम्पादन कार्य भी किया है। सामाजिक सेवा के कई कार्यक्रमों का संचालन एवं प्रसारण दूरदर्शन पर आपके खाए में है। आप कई संगठनों में जिलाध्यक्ष,उपाध्यक्ष और अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भाल चुकी हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु आप सदा प्रयासरत हैं 

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