दिल्ली
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…
महिलाओं की भागीदारी को हर क्षेत्र में बढ़ावा देने और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए हर वर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है। यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष और उनके हक की लड़ाई की कहानी बयां करता है। यह हमें बताता है कि महिलाओं को अपने ऊपर बहुत मेहनत और तेजी से काम करने की जरूरत है। इस दिवस का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करना और लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता फैलाना भी है। यह दिन महिलाओं के सशक्तिकरण, समाज, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और राजनीति में उनके योगदान को पहचान दिलाने के साथ-साथ उनके अधिकारों और अवसरों की वकालत है। परिवार, समाज, देश एवं दुनिया के विकास में जितना योगदान पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का है।
नया भारत-सशक्त भारत-निर्माण की प्रक्रिया में महिलाएं घर-परिवार की चार दीवारों को पार करके राष्ट्र निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दे रही हैं। दिल्ली एवं पश्चिम बंगाल में महिला मुख्यमंत्री हो या केन्द्र में वित्तमंत्री, खेल जगत से लेकर मनोरंजन जगत तक और राजनीति से लेकर सैन्य व रक्षा तक में महिलाएं बड़ी भूमिका में हैं। जरूरत सम्पूर्ण विश्व में नारी के प्रति उपेक्षा एवं प्रताड़ना को समाप्त करने की है। इस दिवस की सार्थकता तभी है, जब महिलाओं को विकास में सहभागी ही न बनाएं, बल्कि उनके अस्तित्व एवं अस्मिता को नोंचने की वीभत्सता पर विराम लगे, ऐसा वातावरण बनाएं।
यह दिवस केवल जश्न का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है। यह हमें याद दिलाता है, कि जब तक लैंगिक समानता पूरी तरह हासिल नहीं होती, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा।
महिलाओं की स्थिति, कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाएं, तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, गाँवों में महिला की अशिक्षा एवं शोषण, सुरक्षा, बलात्कार की घटनाएं, अश्लील हरकतें और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराध को एक बार फिर चर्चा में लाकर सार्थक वातावरण का निर्माण करने की आवश्यकता है। एक टीस सी मन में उठती है कि आखिर नारी कब तक भोग की वस्तु बनी रहेगी ? उसका जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा, वह कब तक भस्म होती रहेगा ? शताब्दियों से चली आ रही अर्थहीन परम्पराओं और आत्महीनता के मनोभावों को निरस्त करने के लिए प्रतिरोधात्मक चेतना का विकास करना नितांत अपेक्षित है।
नारी केवल एक शब्द नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का आधार है। वह जीवनदायिनी है, प्रेम की मूर्ति और रिश्ते संवारने वाली शक्ति है। भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति, ममता, और त्याग का स्वरूप माना गया है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, फिर भी कई चुनौतियाँ सामने हैं। समाज में आज भी घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव, शिक्षा में असमानता, दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी बुराइयाँ मौजूद हैं। अगर हम किसी समाज को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें महिलाओं को सशक्त बनाना होगा। उनके अधिकार, शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता देना होगी, ताकि वे अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जी सकें। जब तक स्त्री की अन्याय के प्रति विद्रोही चेतना का जागरण नहीं होता, वह अपने अस्तित्व को सही रूप में नहीं समझ सकती। उसे अपने परम्परागत महत्व एवं शक्ति को समझना होगा। लोक मान्यता के अनुसार मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुण्य, बल, लक्ष्मी पशुधन, सुख, धन-धान्य आदि प्राप्त होता है, फिर क्यों नारी की अवमानना होती है ? नारी धरती की धुरी है, स्नेह का स्रोत है, मांगल्य का महामंदिर है। परिवार की पीढ़िका है व पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा, शीतलता और शांति की अनुभूति होती है, वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। नारी जाति के अलंकरण हैं-सादगी और सात्विकता। सत्यं, शिवं सुंदरं की समन्विति कृत्रिम संसाधनों से नहीं, अनंत तेज को निखारने से हो सकती है। सुप्रसिद्ध कवयित्रि महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था-“नारी सत्यं, शिवं और सुंदर का प्रतीक है। उसमें नारी का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है।”
महिलाओं के युग बनते-बिगड़ते रहे हैं। कभी उनको विकास की खुली दिशाओं में पूरे वेग के साथ बढ़ने के अवसर मिले हैं, कभी पूरी सामाजिक प्रतिष्ठा मिली है तो कभी वे समाज के हाशिए पर खड़ी होकर स्त्री होने की विवशता को भोगती रही है। कभी समग्र परिवार का संचालन करती हैं, तो कभी अपने ही परिवार में प्रताड़ित होकर निष्क्रिय बन जाती हैं। इन विसंगतियों में संगति बिठाने के लिए महिलाओं को एक निश्चित लक्ष्य की दिशा में प्रस्थान करना होगा। बदलते परिवेश में आधुनिक महिलाएं मैथिलीशरण गुप्त के इस वाक्य-“आँचल में है दूध” को सदा याद रखें। उसकी लाज को बचाएँ रखें। एक ऐसा सेतु बनें, जो टूटते हुए को जोड़ सके, रुकते हुए को मोड़ सके और गिरते हुए को उठा सके। नन्हे उगते अंकुरों और पौधों में आदर्श जीवनशैली का अभिसिंचन दें ताकि वे शतशाखी वृक्ष बनकर अपनी उपयोगिता साबित कर सकें। ‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, किंतु आज नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक बात है।