पटना (बिहार)।
साहित्यकारों को भाषा के उच्चारण एवं वर्तनी पर विशेष ध्यान देना चाहिए, वरना अर्थ का अनर्थ हो जाता है। कविता छन्दबद्ध हो या निर्बन्ध हो, इस पर पर कोई तर्क नहीं। तर्क यहाँ यह है कि हम लिख क्या रहे हैं ? सपाटबयानी कविता नहीं होती, कविता में भावाभिव्यंजना होनी चाहिए, क्योंकि उक्ति वैचित्रय ही काव्य का जीवन होता है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से आयोजित कवि सम्मेलन में यह बात अध्यक्षीय टिप्पणी में वरिष्ठ गीतकार आचार्य विजय गुंजन ने कही। सम्मेलन में पढ़ी गईं कविताओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए मुख्य अतिथि मंजू सक्सेना ने कहा कि युवा साहित्यकारों को निष्पक्षता पूर्वक मंच देना अपने- आपमें महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्य है, जिसे सिद्धेश्वर जी निभा रहे हैं।
संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि विजय गुंजन के गीतों में रस, भाव और सौंदर्य का अद्भुत संगम है। विवादास्स्पद समय और कविता सृजन के कठिन दौर में आचार्य विजय गुंजन जैसे वरिष्ठ गीतकार पूरे दम-खम के साथ अपनी कविता में ऐसा कवितापन लेकर आए हैं, जिसने कविता शास्त्री या समीक्षक और आलोचक को मुख्य धारा के गीतकार के समक्ष खड़ा कर दिया है। आचार्य विजय गुंजन की कविताओं में परंपरागत चाँद दिखाई पड़ता है। गीतात्मक कविता पारंपरिक रूप से सख्त औपचारिक नियमों का पालन करती है, जिसके गीतकार आचार्य विजय गुंजन हैं।
सम्मेलन में देशभर के रचनाकारों ने कविताओं का पाठ किया, जिनमें हजारी सिंह, विजया कुमारी मौर्या, शंकर सिंह, राज प्रिया रानी व रजनी श्रीवास्तव आदि रहे। धन्यवाद ज्ञापन प्रभारी डॉ. अनुज प्रभात ने किया।