गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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४५ वर्षीय दीवान की नौकरी छूट गई थी, बॉस ने जलील करके ऑफिस से निकाल दिया था। पिछले १२ महीनों में तीसरी बार उसे नौकरी से निकाला गया था। रात हो चुकी थी। वह बाजार में पेड़ के नीचे रखी एक बेंच पर बैठा था। घर जाने का उसका जरा भी मन नहीं था। बेंच पर बैठा वह अपने दोस्तों को बार-बार फोन मिला रहा था।
उनसे रिक्वेस्ट कर रहा था कि कहीं जगह खाली हो तो बता दें उसे तुरंत नौकरी की जरूरत है।
दीवान कामचोर नहीं था, मगर बढ़ते कम्प्यूटर के इस्तेमाल ने उसे कमजोर बना दिया था। हालांकि, उसने कम्प्यूटर चलाना भी सीख लिया था, मगर नये लड़कों जितना कम्प्यूटर उसे नहीं चलाना आता था। इस कारण उससे गलतियाँ हो जाती थी।
रात के १० बजे वह हताश और निराश-सा घर पहुंचा। अंदर प्रवेश करते ही बीवी चिल्लाई,-“कहाँ थे इतनी रात तक ? किस औरत के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे ? तुमको शर्म भी नहीं आती क्या ? घर में जवान बेटा और बेटी बैठे हैं। उनकी शादी की उम्र निकलती जा रही है। कब होश आएगा तुम्हें ? अगर इनकी जिम्मेदारी नहीं निभानी थी तो पैदा ही क्यों किया था ? “
‘दीवान’ कुछ भी नहीं बोला। पत्नी की रोज-रोज की चिक-चिक का उसने जवाब देना छोड़ दिया था। अभी वह बाहर रखी टंकी से लगे नल से हाथ मुँह धो रहा था, कि बेटी दौड़ते हुए उसके पास आई। आते ही बोली “पापा, आप मेरे लिए मोबाइल लाए क्या ?” दीवान ने बेटी को भी कोई जवाब नहीं दिया। बेटी फिर से बोली- “पापा आप जवाब क्यों नही देते ? सुबह तो आप पक्का प्रॉमिस करके गए थे, कि रात को लौटते समय मेरे लिए मोबाइल लेकर ही आएंगे।” दीवान चुप ही रहा। वह जवाब देता तो क्या देता ? बेटी के मोबाइल के लिए एडवांस मांगने पर ही तो बॉस ने उसे नौकरी से निकाल दिया था।
बेटी अपने हाथ में पकड़े पुराने फोन को दिखाते हुए बोली- “आपको क्या लगता है पापा ? मैं झूठ बोल रही हूँ ? देखो ये मोबाइल सचमुच खराब हो गया है। ऑन करते ही हैक हो जाता है।”
दीवान चुप था। वह अपनी नौकरी जाने की खबर भी किसी को नहीं बताना चाहता था, क्योंकि वह जानता था अगर ये बात बताई तो बेटा, बेटी और पत्नी सभी उसके पीछे पड़ जाएंगे। उसे कोसने लगेंगें कि वह ढंग से काम नहीं करता। इसी लिए, हर चौथे महीने नौकरी से निकाल दिया जाता है।
हाथ-मुँह धोने के बाद वह सीधा अपने कमरे मे गया। जहाँ बेड पर पसरी पत्नी मोबाइल चला रही थी, जिसकी आँखें मोबाइल स्क्रीन पर थी और कान घर में हो रही बातों को सुन रहे थे। ज्यों ही दीवान ने कमरे में कदम रखा, वह चिल्लाई “जवाब क्यों नहीं देते ? बहरे हो गए क्या ? बेटी को मोबाइल क्यों नहीं लाकर दिया ?”
वह दबी-दबी आवाज में बोला- “पैसे हाथ में नहीं आए। जब पैसे मिलेंगे तब ला दूंगा ?”
पत्नी बोली-“हाथ में नहीं थे तो किसी से उधार ले लेते ? तुम जानते हो ना वह कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रही है। बिना मोबाइल के कैसे पढेगी ?” दीवान के पास जवाब देने को बहुत कुछ था, मगर अब उसने चुप रहना सीख लिया था।
वह रसोई में चला आया। खुद ही थाली निकाली, फिर खाना खाने लगा।
दीवान की बेटी २२ साल की हो चुकी थी। बेटा २५ साल का हो चुका था। दोनों पढाई में कम और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते थे। इस कारण कॉम्पिटिशन में निकलने का सवाल ही पैदा नहीं होता था।
अभी दीवान ने खाना खत्म नहीं किया था कि उसका बेटा घर से बाहर से गाना गुनगुनाता हुआ सीधा रसोई में आया, मगर दीवान को वहाँ खाना खाते देखकर अपने कमरे में चला गया। दीवान ने नोटिस किया कि उसके कदम बहक रहे थे। जरूर यार-दोस्तों के साथ बैठकर पीकर आया था।
शुरू-शुरू में जब बेटा पीकर घर आता था, तब दीवान उसे बहुत डांटा करता था, मगर एक दिन बेटा सामने बोल गया। दीवान को ज्यादा गुस्सा आ गया था। इस कारण उसने बेटे को थप्पड़ लगाना चाहा। तब बेटे ने उसका हाथ पकड़ लिया था और गुस्से में उसे आँख दिखाने लगा था। उस दिन के बाद दीवान ने बेटे से कुछ भी कहना छोड़ दिया था।
वह खाना खाकर वापस कमरे में आया, तब पत्नी की किच-किच फिर से शुरू हो गई थी, मगर वह चुपचाप सो गया।
सुबह जल्दी उठकर वह काम की तलाश में निकल गया। वह जानता था, बिना काम किए सब-कुछ बिखर जाएगा। घर खर्च चलाना था। बच्चों की पढ़ाई की जरूरतें पूरी करनी थी, उनकी शादी भी करनी थी।
शाम तक वह भूखा-प्यासा दफ्तरों के चक्कर लगाता रहा। खाना नहीं खाने से शरीर की शुगर लो हो गई थी। शरीर में सुन्न-सी आई हुई थी। वह सोचते हुए चल रहा था।
पता नहीं, कब चलते-चलते वह फुटपाथ से मुख्य सड़क पर आ गया। तेज दौड़ता हुआ ट्रैक्टर उसके ऊपर से निकल गया। दीवान को तड़पने का मौका भी नहीं मिला। सड़क पर ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
दीवान के बेटे-बेटी और पत्नी ने रोते-बिलखते हुए उसका अंतिम संस्कार किया। उसके जाने के बाद घर का माहौल पूरी तरह बदल गया था, जिन लोगों से उधार पैसे ले रखे थे, वे रोज घर का चक्कर लगाने लगे थे। रिश्तेदारों ने फोन उठाने बन्द कर दिए थे। घर का वाई-फाई का कनेक्शन कट चुका था। अचानक से घर में नेट चलना बंद हो गया था। बेटी और बेटा अब खाने में कमी नहीं निकालते थे। जो भी मिल जाता, खाकर पानी पी लेते थे। बेटे की आजादी खत्म हो गई थी। अब वह एक कपड़े की दुकान में ७ हजार ₹ महीने की नौकरी करने लगा था। बेटी भी एक निजी विद्यालय में ५ हजार ₹ महीने की नौकरी करने लगी। पत्नी के लिए सब कुछ बदल चुका था। माथे का सिंदूर मिटते ही उससे सजने-संवरने का अधिकार छीन लिया गया था। अब वह घंटों शीशे के सामने खड़ी नहीं होती थी।
जो पति को देखते ही किच-किच शुरू कर दिया करती थी, अब उसकी आवाज सुनने को तरस गई थी। पति जब जिंदा था, वह निश्चिंत होकर सोया करती थी, मगर उसके गुजरने के बाद एक छोटी-सी आवाज भी उसे डरा देती थी। रातभर नींद के लिए तरसती रहती थी। उसके गुजरने के बाद पूरे परिवार को पता चल गया था, कि वो उनके लिए बहुत कुछ था। वो सुख-चैन था, नींद था, वो रोटी था, कपड़ा था, मकान था। वो पूरा बाजार था, वो ख्वाहिशों का आधार था, मगर उसकी वैल्यू (महत्व) उसके जीते जी उन्हें पता नहीं थी। पिता की कदर किया करो, अगर वो गुजर गया तो अंधेरा छा जाएगा।
परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”