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अनुकरणीय भगवान श्री राम

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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“रमणे कणे-कणे इति राम’
जो कण-कण में बसे, वही राम है।” श्री राम के विषय में सनातन धर्म में अनेक कथाएं एवं गाथाएं विद्यमान हैं। श्री राम के जीवन की अनुपम कथाएं महर्षि वाल्मीकि जी ने अत्यंत सुंदर शब्दों में रामायण में प्रस्तुत की है। इसके अतिरिक्त गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी में ‘रामचरितमानस’ की रचना करके उसे जन-जन के हृदय तक पहुंचा दिया।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का चरित्र अनुकरणीय है। उनका पूरा जीवन आदर्श और प्रेरणा से पूर्ण है। इस धरा पर अवतरित होकर उन्होंने साधु, संतों तथा अपने भक्तों की रक्षा की एवं सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उनके बताए मार्ग का अनुकरण करके ही हम अपना, समाज व राष्ट्र का कल्याण कर सकते हैं, और साथ में आपसी एकता तथा अखंडता को बनाकर रख सकते हैं।
धर्मग्रंथों में भगवान् राम को सबसे आदर्श पुरुष माना गया है। सांसारिक जीवन में आगे बढ़ने, नाम कमाने यानी यश-कीर्ति के के लिए सद्गुणों और अच्छे कार्यों की भूमिका होती है, क्योंकि गुण और कार्य ही किसी भी इंसान को असाधारण और विलक्षण प्रतिभा का स्वामी बना देते हैं। भगवान राम का चरित्र और कार्य के उन्हीं गुणों को जीवन की घटनाओं के माध्यम से जनमानस के समक्ष रखा गया है।
उन्होंने मानवीय रूप में जन-जन का भरोसा और विश्वास अपने आचरण और असाधारण गुणों से ही पाया। उनके चारित्रिक गुणों के कारण ही वह न केवल लोकनायक बने, वरन् युगान्तर में भी भगवान के रूप में पूजित हैं।
श्री राम कर्तव्यनिष्ठ हैं। पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राजगद्दी को त्याग कर वनगमन को स्वीकार कर लिया। श्री राम का मधुर स्वभाव है एवं सरस भाषी हैं। श्री राम ने माता-पिता का सम्मान करने का आदर्श प्रस्तुत किया है। भ्रातृ प्रेम का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए भरत जी के प्रति उनका अटूट विश्वास और प्रेम उनके चरित्र द्वारा देखने को मिलता है।
राम जी ने गुरु की महत्ता को अपने दैनिक जीवन द्वारा प्रदर्शित किया है। यहाँ तक कि गुरु ही जीवन के अंधकार को मिटाने का मार्गदर्शन कर सकता है।
राम जी ने कठिन से कठिन परिस्थिति में धैर्य को नहीं खोया है। मानस में कहा गया है ‘बड़े भाग मानुस तन पावा…’ अर्थात मनुष्य का शरीर बड़ी कठिनता से प्राप्त होता है, क्योंकि इसी जीवन में अपने कर्मों द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। त्रेतायुग में भगवान श्री राम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की वृत्तियाँ जनमानस के मन को शांति और आनंद उपलब्ध करवाती हैं।
संपूर्ण भारतीय समाज के जनमानस में समान रूप से आदर्श के रूप में भगवान श्री राम को उत्तर से दक्षिण तक स्वीकार करके पूज्य माना जाता है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।
आदिकवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गांभीर्य में उदधि के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम जी के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसी लिए भगवान् राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
सर्वोच्च संरक्षक विष्णु के अवतार श्री राम सदा ही हिंदू देवताओं के बीच लोकप्रिय रहे। राम शिष्टाचार और सदाचार के प्रतीक हैं, जो मूल्यों और नैतिकता के उदाहरण हैं। श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिसका अर्थ है- मर्यादा का पालन करने वाला। उन्होंने सदा ही मर्यादा का पालन किया। वह सिद्ध पुरुष थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री राम ने उस युग की राक्षसी वृत्तियों अथवा बुरी शक्तियों को नष्ट करने के लिए इस धरती पर जन्म लिया था।
देवता के रूप में भगवान् राम स्वामी विवेकानंद के शब्दों में सत्य का अवतार, नैतिकता का आदर्श पुत्र, आदर्श पति और सबसे बढ़ कर आदर्श राजा हैं, जिनके कर्म उन्हें ईश्वर की श्रेणी में खड़ा करते हैं।
वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ एक महान् हिंदू महाकाव्य है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। ‘रामायण’ संस्कृत भाषा में थी, तुलसीदास ने इसी को ‘रामचरितमानस’ नाम से रच कर जन-जन के मानस तक पहुंचा दिया। इस अद्भुत रचना ने महान हिंदू देवता के रूप में श्री राम को जनमानस में प्रतिष्ठित कर दिया, राम जी की लोकप्रियता को बहुत बढा दिया और विभिन्न भक्ति समूहों को जन्म दिया।
राम जी का चरित्र देखें तो श्री राम सद्गुणों की खान थे। वह न केवल दयालु और स्नेही थे, वरन् उदार और सहृदयी भी थे। भगवान राम के पास एक अद्भुत शारीरिक और मनोरम शिष्टाचार था। श्री राम का व्यक्तित्व अतुल्य और भव्य था। वह अत्यंत शिष्ट और निडर, बहुत सरल स्वभाव के थे।
आदर्श उदाहरण की बात हो तो भगवान् राम को दुनिया में एक आदर्श पुत्र के रूप जाना जाता है, एवं अच्छे गुणों के प्रत्येक पहलू में वह श्रेष्ठ प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी झूठ नहीं बोला। वह हमेशा विद्वानों और गुरुजनों के प्रति सम्मान की दृष्टि से पेश आते थे। लोग उनसे स्नेह करते थे और उन्होंने सभी लोगों को बहुत प्रेम और दिया। उनका व्यक्तित्व पारलौकिक और उत्कृष्ट था। वे परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को समायोजित कर लेते थे। वह सर्वज्ञ होने के कारण प्रत्येक मनुष्य के हृदय की भावनाओं को जानते और समझते थे। वह राजा के पुत्र थे और उनके अंदर राजा के सभी बोधगम्य गुण थे एवं वह लोगों के दिलों में वास करते थे।
भगवान राम अविश्वसनीय अलौकिक गुणों से संपन्न रहे। भगवान राम अविश्वसनीय पारमार्थिक गुणों से सम्पन्न थे, और सभी के लिए अप्रतिम भगवान के रूप में थे। एक सफल जीवन जीने के लिए श्री राम के जीवन का अनुकरण करना श्रेयस्कर उपाय है। श्री राम का जीवन एक पवित्र अनुपालन का जीवन, अद्भुत बेदाग चरित्र, अतुलनीय सादगी, प्रशंसनीय संतोष, सराहनीय आत्म बलिदान एवं उल्लेखनीय त्याग का जीवंत उदाहरण है।
श्री राम हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार आदर्श पुरुषों में गिने जाते हैं। पुराणों में उन्हें श्रेष्ठ राजा कहा गया है। वह मनुष्य रूप में जन्मे और ऋषि विश्वामित्र से विद्योपार्जन के उपरांत पृथ्वी पर अनेक राक्षसों का संहार किया। सत्य, धर्म, दया और मर्यादा पर चलते हुए राज किया। उन्होंने जिस तरह राज किया, उसे आज भी रामराज्य कह कर याद किया जाता है। हमारी संस्कृति और सदाचार की जब भी बात होती है, तो श्री राम का नाम लिया जाता है। आज भी बड़े-बुजुर्गों के मुँह से सुनने को मिलता है, कि बेटा हो तो राम जैसा, राजा हो तो राम जैसा…।