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पुष्प का अदम्य साहस

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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एक दिन मैंने पुष्प को छुआ,
पुष्प मुस्करा कर बोला-
क्यों आए हो ?
मैंने कहा, -बस तुम्हें निहारने,
बस निहारने ही आए हो!
मैंने अनमने मन से पूछा-
मैं तुम्हारी खुशबू, संपर्क,
पुष्प फिर मुस्कुरा कर बोला-
अच्छा, देख लो जी-भर करके, संपर्क, पर
मुझे तोड़ना नहीं।

मैंने फिर कहा-
मैं तुम्हारी सुंदरता को निहारती…
कितने सुन्दर हो ! और खुशबू !
अपने अरमान सुनाओ,
पुष्प उदास उपेक्षित-सा बोला-
तोड़ देते हो मुझे खेल-खेल में,
फैला देते हो तिरस्कृत
उड़ेल देते हो दम्भ भरने वालों पर, दंभ भरते
वाह-वाही लूटने फैला देते हो,
तमाम भ्रष्टाचार पर,
फैला देते हो कुछ खोखले मनचलों पर।

मैंने फिर पूछा
“कहाँ तोड़ कर बरसाएं ?”
पुष्प ने हल्का होकर कहा-
“मुझे नन्हे-नन्हे बाल मन के साथ रख देना,
या हरि चरणों में समर्पित कर देना
जहां हँसता परिवार हो।
वहां बरसा देना,
जहां भाइयों में प्रेम हो…
वहां माला बना पहना देना,
जहां माता-पिता भगवान की तरह श्रद्धा चरण-रज के साथ रख देना।”

मैंने कहा-बस,
पुष्प ने आह! भरते हुए कहा-
इस बार मुझे शंका हुई
क्या बात है ?
पुष्प झल्लाया, मैंने फिर पूछा,
पुष्प ने गहरी साँस ली और कहा-
बरसा देना,
जहां देश की खातिर न्योछावर,
मातृभूमि पर अपना फर्ज निभाते
वीर सपूतों की शान में मुझे सजा देना,
सरहद पर मर मिटने वाले की गलमाल बन
जीवन मेरा चार दिन का,
साकार पथ पर बिछा देना।

पुष्प के अदम्य उत्साह,
सजीवता, सरसता,
साहस को सलाम कर।
अदब से अनिमेष
देखती रहूं, कनखी सहला कर॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।