संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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मानव जीवन था नज़र बंद,
पक्षी-पौधे थे पूर्ण स्वछंद
पर्यावरण हुआ स्वच्छ मंद,
नहरों-नदियों में अंतर्द्वंद।
दृष्टिगत हुई नदियाँ गहरी,
पक्षी स्वयं समझे उड़नपरी
दुनिया इंद्रधनुषी रही खड़ी,
खुशहाली कर्फ्यू की भेंट चढ़ी।
कल-कल नदियाँ आगे को बढ़ी,
लहरें समुद्र की हिलोरे ले चढ़ी,
हरियाली प्रकृति ने खूब गढ़ी,
जीव-जंतुओं की फ़िक्र बड़ी।
महामारी ‘कोरोना’ थी बहुत बड़ी,
बढ़े सैनेटाइजर प्रयोग घड़ी-घड़ी,
लगे अपनी ज़िंदगी हो बहुत बड़ी,
माँ-बाप रिश्तों की चिंता नहीं बढ़ी।
हर घंटे मृत्यु दर अज़ब बढ़ी,
संक्रमण में दुनिया रही पड़ी
लाशें जलती थी कई दिनों सड़ी,
रिश्तों-नातों की खुली कड़ी।
सारे जन-जीवन नजर बंद थे,
माँ-बाप तक पहुँचे अकलमंद थे
जनसेवा में सिपाही लामबंद थे,
मरते रिश्तों पर सबके मन बंद थे।
पर्यावरण मानक दुनिया को पसंद थे,
हरियाली, पक्षी कलरव के गजब रंग थे
प्रकृति संतुलन, पेड़ हरे सब रंगारंग थे,
उन्मुक्त गगन, उन्मुक्त धरा सब अंतरंग थे।
संक्रमण ने तोड़ा रिश्ते-नातों को,
संयुक्त हुए परिजन देख हालातों को
गाँव से प्यार, घर में मनुहार दे बातों को,
सबने तवज्जो दी जज्बातों को।
हम सबने हराया खूंखार ‘कोरोना’ को,
धो डाला सारा डर उस रोने-धोने को।
आओ फिर मिलकर हराएं ‘कोरोना’ को,
दस्तक से पूर्व मिटाएं खतरों से ‘कोरोना’ को॥
परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”