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बदनाम गली का घर

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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“मिहिर, मैंने आपके कपड़े और टिफिन बैग में रख दिए हैं।”
उसने आँखों ही आँखों में प्यारी पत्नी मानी को अपनी कोठरी के अंदर आने का इशारा किया और उसके अंदर आते ही उसे अपनी बाँहों में भर लिया था… “मानी तुझे छोड़ कर जाने का बिल्कुल भी मन नहीं करता, लेकिन मेरी मजबूरी है कि मैं तुझे अकेले छोड़ कर जा रहा हूँ।“ हर बार जाते समय दोनों भावुक होकर आँखों में आँसू भर लेते, फिर वह उन मीठी यादों और फोन की बातों के सहारे अपने दिन काटते थे।
मिहिर दिल्ली में एक स्टोर में सेल्समैन की नौकरी करता था और मानी गाँव में रहती थी। वह होली- दिवाली आता और कुछ दिन रहने के बाद चला जाया करता… मानी को उदास देख कर कहता कि “मैं घर ढूंढ रहा हूँ… घर मिलते ही तुम्हें अपने साथ दिल्ली लेकर जाऊंगा… वह मन ही मन आस लगाए रहती कि अब मिहिर उसे लेकर जाने वाला है, लेकिन वह दिन न आता। इस तरह से २ साल निकल गए…। एक ओर गाँव में रहने वाली मानी के लिए दिल्ली नगरी को देखने का आकर्षण और दूसरे पति के साथ न रहने के कारण अकेलेपन से जूझती मानी की सहनशक्ति अब जवाब देने लगी थी।
एक दिन उसने मिहिर से पूछा, “क्यों आपने कोई घर ढूंढा कि नहीं ?”
“क्या बताऊँ मानी! यहाँ मकान बहुत मंहगे हैं और मेरी छोटी-सी तनख्वाह में गुजर करना मुश्किल हो जाएगा।”
‘‘तो शादी क्यों की थी ?” वह सुबकते हुए बोली थी। “यदि आप इस बार मुझे अपने साथ नहीं लेकर गए तो हमेशा के लिए अपने मायके चली जाऊंगीं… फिर मत कहिएगा कि मानी तुमने मुझे बताया नहीं था…” कह कर नाराजगी से उसने फोन काट दिया था…।
अब मिहिर परेशान हो उठा, क्योंकि वह जानता था कि मानी बहुत जिद्दी लड़की है, जो कहती है वह करके रहती है। उसके सिवा वह मानी को रोते हुए नहीं देख सकता था। उसके कई बार फोन करने के बाद तो मानी ने फोन उठाया, लेकिन अभी भी उसका रोना नहीं बंद हो रहा था…। वह परेशान हो उठा और उसने प्रामिस किया कि “२-४ दिन के अंदर ही मकान ढूंढ कर तुम्हें लेने आऊंगा…।”
अब मानी की खुशी का ठिकाना नहीं था… वह मन ही मन अपने प्रियतम की बाँहों में समा जाने का सपना देखने लगी…। दिल्ली जैसे बड़े शहर को देखने के आकर्षण में खोई हुई वह मन ही मन सपने संजोती रहती थी।
फिर लगभग एक महीना निकल गया और मिहिर की ना-नुकुर चलती रही… “मानी कोई ढंग का मकान मिल ही नहीं रहा है… मैं तो हर संडे मकान ही ढूंढता हूँ…।”
‘मिहिर आपसे मैं नाराज हूँ… मुझे तो ऐसा लगता है कि आपका किसी दूसरी के साथ चक्कर चल रहा है, इसी लिए आप मुझे अपने साथ नहीं ले जाते… जब आपको मुझे अकेले ही छोड़ना था तो शादी किस लिए की थी…” कहकर वह सुबकती हुई बोली… “फिर आप गाँव लौट कर आ जाइए… मैं अब अकेले नहीं रह सकती… यदि ऐसे ही रहना है तो मैं इस संडे को अपने माय़के हमेशा के लिए चली जाऊंगीं”, वह बुरी तरह से सिसक रही थी।
मिहिर मानी की सिसकियों और उसकी धमकी से विचलित हो उठा था। उसकी आँखों के सामने प्यारी-सी पत्नी मानी का सुंदर चेहरा घूम रहा था। उसने समझ लिया था कि अब स्थिति गंभीर है, इसलिए मानी को अपने साथ लाना ही होगा। उसने तुरंत एजेंट को फोन किया और चूंकि शनिवार का दिन था, उस दिन ऑफिस की छुट्टी थी… एजेंट ने उसे ५-६ मकान दिखा डाले थे। और फिर परेशान होकर वह एजेंट की लच्छेदार बातों पर विश्वास करके एक गली के मकान को फाइनल करके पूरे साल का एडवांस किराया भी किसी तरह जुगाड़ करके दे आया।
अगली सुबह वह खुशी-खुशी मानी को सरप्राइज देते हुए उसे लिवाने के लिए गाँव पहुँच गया।
मानी गाँव की अल्हड़ लड़की थी, उम्र लगभग २० वर्ष, उसका रंग दूध -सा गोरा था, तीखे नैन-नक्श, गदबदाया भरे-से बदन के साथ वह गाँव की मधुर निश्छल खिलखिलाहट से भरपूर थी।
उसकी माँ ने उसे समझाते हुए कहा था कि “मिहिर मेरी बहू बहुत भोली है, शहर में इसका ख्याल रखना।”
रास्ते में बस का टायर पंचर हो गया, इसलिए उन लोगों को घर पहुँचते-पहुँचते रात के १० बज गए थे…। जब वह गृहस्थी के सामान के साथ लदा-फंदा गली में पहुँचा तो वहाँ का दृश्य देख कर उसके होश उड़ गए।
वह पूरी तरह से एजेंट के बुने हुए जाल में फंस चुका था… पूरी गली जो दिन के उजाले में वीरान पड़ी हुई थी, रात के अंधेरे में जगमगा रही थी… पूरी गली में सस्ते क्रीम-पाउडर और लिपिस्टिक से होंठों को रंग कर उत्तेजक कपड़ों में लिपटी हुई लड़कियाँ खड़ी होकर आने-जाने वालों को देख कर अपने पास बुलाने के लिए भद्दे-भद्दे इशारे कर रहीं थीं…। चारों ओर हारमोनियम और तबले की आवाज के साथ बेसुरा संगीत सुनाई पड़ रहा था…। मिहिर को देखते ही एक लड़की तेजी से भागती हुई आई और उसके गालों को छू लिया था। मिहिर घबरा कर पीछे को हटा था, और गिरने से बचा था। मानी को ये सब बहुत अटपटा-सा लग रहा था, लेकिन बावजूद अपने प्रियतम के साथ दिल्ली जैसे बड़े शहर में आकर खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। तभी नशे में झूमता हुआ एक आदमी मानी की तरफ बढा तो मिहिर ने तेजी से मानी को घर के अंदर धकेल दिया और उस आदमी को घुड़कते हुए दूर हटा दिया था। तभी उसके कानों में उसका कमेंट सुनाई पड़ा… भद्दी सी गाली देकर वह बोला था… माल तो जोरदार लाया है साला… खूब कमाई करेगा… और ऐश भी करेगा।
यह सब सुन कर उसका खून खौल उठा था, लेकिन ऩई और अनजान जगह सोच कर उसने घर के दरवाजे बंद कर चैन की साँस ली थी। सुबह तो उसे अपने ऑफिस जाना ही था… मानी को हजारों हिदायतें देने के बाद वह अपने काम पर गया था।
समय-बेसमय शराबी आकर उसके घर की घंटी बजा देते, लेकिन डरी-सहमी मानी की होल से देख लेती। लोग उल्टी-सीधी गालियाँ बकते और फिर चले जाते…।
मानी अपने घर के अंदर डरी-डरी कैदी की तरह बंद होकर रहा करती थी, लेकिन इन सबके बावजूद वह प्रियतम को छोड़ कर गाँव जाने को तैयार नहीं थी…। अब वह यहाँ के हालात की आदी हो गई थी। उसको वहाँ पर रहते-रहते ६ महीने हो गए थे। वह अपनी खिड़की से छिप छिप कर आने-जाने वालों को देखा करती थी।
रात के अंधेरे में नेता, अफसर, रईस और गरीब सभी अपनी औकात के मुताबिक अपने तन की भूख मिटाने के लिए आया करते थे… वह वहाँ पर लोगों को नशे में गाली-गलौज, मारपीट करते देखती, पुलिस की आवा-जाही का शोर-शराबा और उनको हफ्ता वसूली करते भी देखा करती… दलालों की भाग-दौड़ और ग्राहकों को पटाने के लिए उनके पीछे पीछे दौड़ते-भागते देखती…। आदमियों की वासना से जलती आँखों को देख कर कई बार उसका मन घृणा से भर जाता, तो कई बार उन लड़कियों की मजबूरी सोच कर मन दया से द्रवित हो उठता था। अब वह यहाँ के जीवन की आदी हो चुकी थी, कुछ भी अटपटा नहीं लगता था…।
सर्दी के दिन थे, कुहासे में डूबी शाम के झुटपुटे में एक ११-१२ साल की डरी-सहमी लड़की ने धीरे- धीरे उसके दरवाजे को खटखटाया था… चूंकि, मिहिर के आने का समय था, इसलिए उसने दरवाजे को बेखटके से खोल दिया था, लेकिन मासूम-सी डरी-सहमी लड़की को देखते ही उसने हिम्मत करके उसे अंदर करके दरवाजे को बंद कर लिया था….पर उसका अपना अंतर्मन और शरीर डर के मारे थर-थर काँप रहा था। वह प्यारी-सी बच्ची डर कर उससे चिपक गई थी, मानों कोई नन्हा-सा हिरण शावक शिकारी के जाल से निकल कर भाग आया हो…।
कई दिनों तक दलाल शक के कारण उसके घर की निगरानी करते रहे थे। मिहिर और वह उस प्यारी-सी इला को सबसे छिपा कर अपने घर में सुरक्षित रखे हुए थे।
मिहिर उस नाजुक-सी लड़की को पुलिस के लफड़े से बचा कर रखना चाहते थे, और फिर इला को सुरक्षित उसके पैरेंट्स के पास पहुँचाना चाहते थे। इला को अपने पापा का मोबाइल नं. नहीं याद था, क्योंकि उन्होंने अभी कुछ दिनों पहले ही खरीदा था और उन्हें पसंद भी नहीं था कि वह अभी से मोबाइल का इस्तेमाल करे। मिहिर उसके बताए हुए पते पर उसके गाँव गए और जैसे ही उन्होंने इला के पिता शीतल प्रसाद को बताया कि इला उनके घर में सुरक्षित है, सबके उदास चेहरे पर खुशी की लहर छा गई थी। कुछ दिनों बाद मिहिर दलालों से छिपते-छिपाते इला को अपने साथ लेकर उसके गाँव पहुँचा तो अपनी बेटी को देख कर उन लोगों की खुशी देखते ही बनती थी। मिहिर के लिए भी वह बार-बार सम्मान और आभार प्रगट कर रहे थे। उन लोगों ने मिहिर के लिए गाँव का गुड़, सब्जियाँ और अनाज बाँध दिया था। उन लोगों का प्यार और सम्मान पाकर वह अभिभूत हो उठा था।
उन लोगों ने बताया कि उन्होंने बेटी की गुमशदगी की रिपोर्ट थाने में लिखा रखी थी, परंतु चूंकि पुलिस स्वयं गाँव के दबंगों से खौफ खाती है, इसलिए कार्यवाही के नाम पर उन्हीं को परेशान करती रहती थी, “तुम्हारी बेटी का किसी से चक्कर रहा होगा, वह अपने यार के साथ भागी होगी।”
बेटी को खोजने के लिए वह यहाँ- वहाँ भाग दौड़ कर रहे थे, लेकिन झूठे आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिल पा रहा था। वह जीवन से निराश होकर बेटी के गम में बिस्तर से लग गए थे। उनके गिरते स्वास्थ्य को देख मिहिर का मन द्रवित हो उठा था। उसने अपने स्टोर के कम्प्यूटर पर काम करने वाले रमेश को सारी बात बताई तो उसने डी.आई.जी. (पुलिस) और अन्य अधिकारियों के साथ साथ राज्य मंत्री को मेल कर दी। उनकी मेल का इतना असर हुआ कि मंत्री से लेकर सारे विभाग के फोन खड़खड़ाने लगे थे और पुलिस ने त्वरित कार्यवाही के कारण इला के बयान के आधार पर कि “जब वह स्कूल से लौट रही थी, तब गाँव के कुछ दबंग गुंडों ने उसके मुँह पर रुमाल सुंघा कर उसे बेहोश करके उठा लिया। पहले उसे दलालों के हाथ बेचा, फिर उन लोगों ने उसे यहाँ पर बेच दिया। वह गाँव के उन गुंडों को अच्छी तरह पहचानती है।” शीतल प्रसाद ने हिम्मत करके उन गुंडों की नामजद रिपोर्ट कर दी और इला की निशानदेही पर वह लड़कियों का अपहरण कर बेचने वाली कुख्यात गैंग पकड़ी गई थी।
वह समाज के सम्पन्न सफेदपोश थे, जो अपनी दबंगई दिखा कर और प्रशासन की मदद से लड़कियों का सौदा किया करते थे।
समय बीतता गया। इला आज पढ़-लिख कर स्वयं एक पुलिस ऑफिसर बन चुकी है… अब वह ऐसे अपराधियों को उनकी जगह जेल में पहुंचाने का काम करती है।
मिहिर को अपना भाई और मानी को भाभी मानती है… आज भी हर रक्षाबंधन को भाई को राखी बांधने जरूर आती है। वह मिहिर और मानी को अपना जीवनदाता एवं भगवान् मानती है।