पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?…
निःसंदेह प्रेम रिश्ते से बढ़ कर होता है। प्रेम से तो ऐसा संबंध बन जाता है, जो अतुलनीय होता है। रिश्ते तो अपने पारिवारिक संबंधों पर आधारित होते हैं। प्रेम को मापने के लिये तो कोई कसौटी ही अभी तक नहीं बनी है। यदि प्रेम नहीं है, तो रिश्ते का कोई औचित्य ही नहीं है।
२१वीं सदी के दौर में रिश्तों से आत्मीयता, अपनापन और सच्चा प्रेम खोता जा रहा है। पहले रिश्तों में अपनापन और भावनाओं की गर्माहट हुआ करती थी। संयुक्त परिवारों में बड़े-बुजुर्गों के प्रति सम्मान और आदर का भाव होता था। इसके अतिरिक्त परिवार में लोगों के रिश्तों के बीच प्यार-आदर और अपनापन होता था, परंतु अब रिश्तों में औपचारिकता, स्वार्थ, अपेक्षा और आपस में दूरी बढ़ती दिखाई पड़ रही है।
प्रेम एक एहसास है, जिसे हर इंसान महसूस करता है। प्रेम का अर्थ खुशहाली होता है, जब हम सबके सुख और खुशी के विषय में सोचते हैं। सबका सुख किसी एक का हित नहीं हो सकता।
आजकल रिश्ते टूटने का मुख्य कारण प्रेम के स्थान पर प्यार- मोहब्बत को अपनाना है। एकल परिवार में न तो कोई रोकने-टोकने वाला, न ही कोई समझाने वाला…। आपस में थोड़ा भी झगड़ा हुआ तो पति-पत्नी के बीच तलाक की नौबत आ जाती है, क्योंकि दोनों में ही अपने अभिमान की समस्या होती है। यदि रिश्तों में दिल से प्रेम हो, तो इतनी आसानी से रिश्ते नहीं टूटते।
आज के समय में प्रेम की भावना के स्थान पर फायदा और नुकसान देखा जाने लगा है। आजकल रिश्ते दिल से नहीं, वरन् दिमाग से निभाए जाने लगे हैं। हर संबंध लेन-देन की दृष्टि से परखा जाने लगा है। हमने तो उनके यहाँ १ हजार का उपहार दिया था, उन्होंने ५०० ₹ पकड़ा कर छुट्टी कर ली। जब रिश्तों के बीच मोलभाव आ गया, तो प्रेम स्वतः ही कम हो जाता है ।
आजकल रिश्ते भी फास्ट फूड की तरह से होते जा रहे हैं। जल्दबाजी के कारण आज जीने-मरने की कसमें और ब्रेक-अप खूब देखने को मिल रहा है। जल्दबाजी के चलते ना ही प्रेम पनप पाता है, ना ही रिश्तों में गहराई आ पाती है।
प्रेम की बुनियाद विश्वास है, पर आज आपस में अविश्वास, शक, सोशल मीडिया की अफवाहें, अत्यधिक निजता ने आपसी रिश्तों के बीच अविश्वास की खाई पैदा कर दी है। जहाँ शक और अविश्वास होगा, वहाँ प्रेम का क्या काम ?
पहले लोग एक-दूसरे की बातें घंटों तक सुनते थे, समझते और परखते थे, लेकिन आज की भागम-भाग भरी व्यस्त दिनचर्या में अपने कैरियर, मोबाइल के इंस्टाग्राम और दूसरे मंच के लिए समय है, पर आपसी रिश्तों में बातचीत के लिए समय नहीं है। यही वजह है कि प्रेम मौन में घुटता जा रहा है।
स्वार्थ और अहंकार के नीचे आपसी रिश्तों का प्रेम सिसक रहा है। अब लोग यह नहीं सोचते, कि रिश्ता कैसे निभे… वरन् ये देखते हैं कि इस रिश्ते में मुझे क्या मिलेगा…? स्वार्थ और अहम् के इसी कारण से रिश्ते में प्रेम समाप्त हो जाता है।
बच्चों को भी नहीं सिखाया जा रहा है, कि रिश्तों को कैसे प्रेम से निभाएं ? संस्कारों की कड़ी टूट रही है। एकल परिवारों में दादी, बाबा य़ा अन्य रिश्तों के विषय में बच्चों को नहीं बताया जा रहा है। पहले की पीढी में बच्चों को सिखाया जाता था, कि “प्रेम और रिश्तों में त्याग करना होता है, समझौता और धैर्य रखना आवश्यक होता है।” इसके उलट आज की पीढी के बच्चों को “प्रेम है तो अधिकार है” ये समझाया जाता है। कोई रिश्तेदार आया है तो क्या उपहार लाया, आज के बच्चों में यह सोच विकसित कर दी गई है।
आजकल के रिश्तों में आपसी प्रेम के स्थान पर दिखावा ज्यादा हो गया है।
सोशल मीडिया पर पोस्ट परफेक्ट रिलेशनशिप की तस्वीरों के पीछे आपसी रिश्तों की वास्तविकता और कड़वाहट छिपी रहती है। जब अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाती, तो प्रेम के रिश्ते दम तोड़ देते हैं।
आजकल लोगों के स्वभाव में क्रोध और उग्रता अत्यंत प्रभावी होती जा रही है, जो आपसी रिश्तों में प्रेम के स्थान पर पलक झपकते ही घृणा, दुश्मनी और गाली-गलौज और मारपीट में तब्दील होते दिखाई पड़ रही है।
बिखरते रिश्तों में प्रेम कैसे लौटेगा, इसके लिए बहुत ईमानदार प्रयास करना होगा। सबसे पहले आपसी रिश्ते में एक-दूसरे को सुनना और समझना शुरू करना होगा। ऐसे ही वाणी पर संयम सबसे आवश्यक है, जो रिश्तों में जहर घोल रहा है। संवेदनशील भी बनना होगा। अपनी बातों को भावनात्मक लहजे में कहें। छोटी-छोटी बातों पर कृतज्ञता जताएं और सराहना करें। रिश्तों में ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ को महत्व दें। प्रेम को केवल शब्दों में नहीं वरन् व्यवहार में उतारें, क्योंकि प्रेम कोई वस्तु नहीं है, कि वह खो गया है तो हम यहाँ-वहाँ ढूढ कर ले आएंगें। वरन् यह तो जीवन का अनुभव है, जिसे व्यवहार से हर दिन सींचना होता है। इसके लिए आवश्यकता है आपसी समझ, समय, त्याग और प्यार से परिपूर्ण अपनत्व की। यदि हम अपने रिश्तों में फिर से दिमाग की जगह दिल को बनाएं तो प्रेम फिर से लौट सकता है और वह भी पहले की अपेक्षा ज्यादा सुंदर रूप में।