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हजारों राह है

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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हजारों राह है,
पर चलना कहाँ ?
खबर नहीं फिर भी,
यूँ ही सफ़र हम क्यों करते हैं।

ज़िन्दगी की राह भी,
इतनी ही मुश्किल है
पर चलना तो है,
इसलिए हम तो सफ़र करते हैं।

टूटती है पगडंडी,
राह में कठिनाइयाँ आती है
पर तू मत हार आगे बढ़,
इसलिए तो हम सफ़र करते हैं।

हजारों राह है,
जीवन भी तो रास्तों जैसा है
कभी छाँव-कभी धूप।
कहीं ठहरता मुकाम,
इसलिए हम तो सफ़र करते हैं॥