बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
******************************************
तीर चलाए अर्जुन,
विजयश्री लिखते मुरारी
ऐसा चक्र चलाओ गिरधारी,
हाहाकार करें दुराचारी…।
धूर्त कपटी व्यूह रचते,
सज्जनता को प्रतिपल छलते
विश्वास उठ रहा जन का मोहन से,
फिर कर्ण मिल बैठा दुर्योधन से
मेरा कोई नहीं, बस तुम हो
ओ मायापती बिहारी।
ऐसा चक्र चलाओ गिरधारी,
हाहाकार करें दुराचारी…।
भरी सभा में चीर खींचे,
सब बैठे बस आँखे मींचे
क्या हुआ इस भरी सभा को ?
जो कहते तुम पवित्र हो नारी।
ऐसा चक्र चलाओ गिरधारी,
हाहाकार करें दुराचारी…॥