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भारत चाहता है-युद्ध का नहीं, शांति का दौर बने

ललित गर्ग

दिल्ली
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दुनिया आज एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां युद्ध और हिंसा ने सभ्यता की प्रगति को खतरे में डाल दिया है। रूस-यूक्रेन संघर्ष इसके ताजे उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। इस युद्ध ने न केवल यूरोप की स्थिरता को हिलाकर रख दिया है, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है। ऐसे कठिन समय में भारत ने अपनी पारंपरिक नीति-अहिंसा, निशस्त्रीकरण और अयुद्ध का परिचय कराते हुए स्पष्ट किया है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की को भारत आने का निमंत्रण देकर भारत ने संकेत दिया है कि युद्ध विराम एवं शांति समझौता कराने में भारत सक्रिय भूमिका निभा सकता है, निश्चित ही इस कदम का स्वागत होना चाहिए। रूस एवं यूक्रेन को भारत बातचीत की टेबल पर ले आता है, तो यह पूरी दुनिया के हित में होगा, इससे यु़द्ध का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला होगा।

भारत द्वारा यूक्रेन के राष्ट्रपति को भारत आने का निमंत्रण देना अमेरिका की चालों को करारा जवाब देने वाला कूटनीतिक कदम भी है। हाल के दौर में अमेरिका ने भारत पर व्यापार कर लगाकर और विभिन्न आर्थिक दबाव बनाकर उसकी अर्थव्यवस्था को अस्थिर एवं अस्त-व्यस्त करने की कोशिश की है, किंतु मोदी सरकार ने अपनी दृढ़ कूटनीति से यह संदेश दिया है कि भारत अब किसी दबाव में आने वाला नहीं है। भारत ने यह दिखा दिया है कि वह रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संवाद रखकर स्वतंत्र नीति अपनाने में सक्षम है और अमेरिका की अपेक्षाओं के आगे झुकने की बजाय अपनी शांति और संतुलन की राह पर आगे बढ़ रहा है। यह कदम भारत की आत्मनिर्भर, साहसी और वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका का प्रमाण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है-“यह युद्ध का दौर नहीं है।” यह वाक्य केवल एक कूटनीतिक कथन नहीं, बल्कि भारत की शाश्वत नीति और सांस्कृतिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने केवल शब्दों तक ही सीमित भूमिका नहीं निभाई, बल्कि ठोस मानवीय प्रयास भी किए। ‘ऑपरेशन गंगा’ के अंतर्गत हजारों भारतीय छात्रों और नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। भारत ने यूक्रेन को दवाइयां, मानवीय सहायता और राहत सामग्री भेजी। भारत ने रूस और यूक्रेन दोनों से संवाद बनाए रखा। प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की से निरन्तर बातचीत में भी भारत का रूख स्पष्ट किया कि शांति बहाल होनी चाहिए, यह युद्ध का दौर नहीं, बल्कि शांति एवं विकास का दौर है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप एवं रूसी राष्ट्रपति पूतिन के बीच अलास्का में हुई शिखर वार्ता का भी भारत ने स्वागत किया था।
आज भारत की छवि एक विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में उभरी है। भारत न केवल जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के लिहाज से बड़ा देश है, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टि से भी विश्व में एक अलग पहचान रखता है। गांधी की भूमि, बुद्ध की करुणा और महावीर की अहिंसा से प्रेरित यह राष्ट्र यदि शांति का झंडा उठाता है, तो उसकी आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि पूरी दुनिया आज भारत से अपेक्षा कर रही है कि वह शांति का नेतृत्व करे। भारत की यह भूमिका उसे केवल एक उभरती महाशक्ति ही नहीं बनाती, बल्कि ‘विश्वगुरु’ के रूप में स्थापित करती है, क्योंकि भारत जानता है-“शांति ही मानवता का वास्तविक मार्ग है, और अहिंसा ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति।”
भारत की शांति नीति केवल रूस-यूक्रेन युद्ध तक सीमित नहीं रही है। भारत ने हमेशा संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता दी है।
भारत का इतिहास शांति और अहिंसा का इतिहास है। भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वाेच्च धर्म बताया। उन्होंने कहा-“अहिंसा परमो धर्मः”। गौतम बुद्ध ने करुणा और मैत्री का संदेश दिया और पूरी एशिया भूमि को ‘शांति क्षेत्र’ बनाने की दृष्टि दी। गहराई से निहित है कि हिंसा केवल विनाश लाती है और शांति ही स्थायी समाधान है। इसी विरासत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पुनर्जीवित किया है। भारत ने इस सत्य को समय रहते समझा और दुनिया को यह संदेश दिया कि ‘शांति ही भविष्य है, युद्ध नहीं।’ इसे आधुनिक कूटनीति में उतारकर यह साबित किया है कि भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए सोचता है।
भारत की अहिंसा की नीति कहती है कि स्थायी समाधान केवल शांति और संवाद में है। अयुद्ध की नीति कहती है कि किसी भी गुट का पिछलग्गू बने बिना स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाना ही असली ताकत है। भारत ने दिखाया है कि यह नीति केवल आदर्श नहीं, बल्कि व्यावहारिक कूटनीति भी है। जब पूरी दुनिया किसी एक पक्ष में बंट रही हो, तब भारत जैसे देश का संतुलित रुख ही शांति की संभावना को जीवित रख सकता है।
भारत का लक्ष्य किसी के खिलाफ खड़ा होना नहीं, बल्कि सबको शांति की राह पर लाना है। यही कारण है कि रूस और यूक्रेन, दोनों भारत पर भरोसा करते हैं। दोनों मानते हैं कि भारत बिना पूर्वाग्रह के समाधान का मार्ग खोज सकता है।