कुल पृष्ठ दर्शन : 13

आम के आम और गुठलियों के दाम

राधा गोयल
नई दिल्ली
******************************************

इसका अर्थ है किसी वस्तु से २ तरह के फायदे लेना यानी आम खाने का फायदा और उसकी गुठलियों को बेकार न समझकर उससे भी कुछ कमाई करना। यानी दोहरा लाभ कमाना।

आज कूड़े का निस्तारण एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। निरंतर कूड़े के पहाड़ खड़े हो रहे हैं। ऊपर से वापरो और फेंको एवं प्लास्टिक का चलन इस कदर बढ़ गया है कि जिसने कूड़े के पहाड़ खड़े करने में निरंतर वृद्धि की है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इस कूड़े से भी कुछ करने का उपाय निकाला, जिससे कूड़े का निस्तारण भी हो सके और उसका उचित उपयोग भी हो सके।
दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में कूड़े का निस्तारण बड़ी समस्या बन चुका है। २०१८ में सीआरआरआई ने इसका समाधान निकाला। संस्था ने दिल्ली की गाजीपुर और वाराणसी की लैंडफिल साइट पर शोध किया। शोध के दौरान उन्होंने कूड़े का इस्तेमाल सड़क बनाने में किया। नई तकनीक में सड़क के नीचे ५ मीटर तक कूड़ा भरा जाता है। इस तरह बनने वाली सड़क के दरकने या धंसने का खतरा नहीं होगा, साथ ही बड़ी मात्रा में कूड़े का निपटारा भी होगा। अकेले दिल्ली से ही रोजाना साढ़े ९ हजार टन कूड़ा निकलता है। इसमें से हजारों टन कूड़ा ऐसा है, जिससे सड़कें बनाई जा सकती हैं। कूड़े का ६५ हिस्सा सड़क बनाने के काम आ सकता है।
सड़क बनाने की इस प्रक्रिया में सबसे पहले कूड़़े को छाँटकर अलग करना होता है। इसके बाद आखिरी चरण में बजरी तारकोल की परत को बिछाया जाता है, पर न जाने इस काम में कितने वर्ष लगेंगे। फाइल पूरे ब्रह्माण्ड का गोल-गोल चक्कर काटती रहेगी।
यदि नीयत सही है और बेरोजगारों को रोजगार देना हो तो बहुत से बच्चों को देखा होगा कि वह कचरे में से बोतलें बीन रहे होते हैं;क्योंकि पेट पालना है। इसलिए यह उनकी मजबूरी है, लेकिन यदि इन्हीं लोगों को बाकायदा मुँह पट्टी देकर इस काम पर लगाया जाए तो वे बोरी में भरकर कचरा लाएं, पर पहले कौन-सा कचरा लाना है।अलग-अलग कचरा अलग-अलग बोरे में हो। सबसे अच्छा है कि ऐसे कचरा बीनने वालों को समूह दल की तरह काम पर लगाया जाए।इसका फायदा यह होगा कि वे एक -दूसरे का सहयोग करेंगे। उन्हें यह भी बताया जाए कि कौन-कौन सा कचरा अलग-अलग बोरे या ट्राली में डालना है। और बकायदा १ बोरी की दर तय करके उनको पैसे दिए जाएँ। इस तरह कचरा भी इकट्ठा होगा और बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा। तो हुआ ना ‘आम के आम और गुठलियों के दाम।’
खास बात कि उन्हें नीचा कतई ना समझें;क्योंकि यही लोग हैं जो हमारे कचरे को बीनकर शहर को शुद्ध रखने में हमारी मदद करते हैं। अमीर लोग तो केवल कचरा फैलाने में यकीन रखते हैं। इस गंभीर समस्या को समझें।