हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
************************************
सन १९५९ में प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘नवरंग’ के गीत और संगीत आज इतने वर्षों बाद भी दिल को छू लेता है। बहुत सुकुन देने वाली धुनें हैं, फिल्म का संगीत अपने-आपमें बहुत ही कर्णप्रिय था। संध्या व वी. शांताराम और संगीतकार सी. रामचंद्र ने जो सुर और ताल के साथ लय का इसमें जो संगम किया था, वह बहुत अनोखा व यादगार बना।
कल्पनाओं की उड़ान में नायक- नायिका ने “आधा है चंद्रमा, रात आधी, रह ना जाए ये बात आधी…”
शब्दों को कितने जबरदस्त तरीके से सजाया था, जिसमें बोला गया कि “रहा राधा का श्याम भी आधा…।”
“नैन आधे खुलें होंठ आधे कहें” ऐसी बातों को जब फिल्माया जाता है तो सही में गाने में जान आ ही जाती है। राजकमल कला मंदिर की इस फिल्म में गीतकार भरत व्यास ने गाने लिखे थे।
चाँदनी रात में सिर पर मटकी लेकर नृत्य करती अभिनेत्री संध्या, साथ में अभिनेता महिपाल का वह अभिनय आज भी इस गीत को अपने-आपमें कालजयी व कर्ण प्रियता के साथ साथ मनभावन भी बनाए हुए है।
‘नवरंग’ फिल्म का पुराने जमाने में इतना खूबसूरत वह मनोहारी दृश्य था, जबकि गणेश जी की प्रतिमा के सामने “अरे जा रे नटखट, ना खोल रे मेरा घूंघट…” होली का वह दृश्य प्राचीनतम त्योहार की संस्कृति व परम्परा को लिए हुए केन्द्रीय गीत में नायक नायिका का किरदार पेड़ के पीछे से जिस प्रकार अभिनेत्री संध्या ने निभाया, वह यादगार है। दोहरे चरित्र में वह गीत जब भी सुनें, तो हमेशा होली की मस्ती का सुरूर देखते ही बनता है। रंगीन दृश्य को इस नए युग में हम श्रोता देखते हैं तो मन बहुत प्रसन्न हो जाता है। हाथी बाबा की पिचकारी से रंगों में सराबोर नायिका के साथ नृत्य करते गजराज, सही में इस गीत में मन को पर्व की लालिमा में सतरंगी छटा बिखेरते हुए मन को भाने वाली प्रस्तुति दी गई थी। संगीत उस जमाने में इतना जबरदस्त कि हर एक वाद्य यंत्र की आवाज जैसे ढोलक, सीटी, घुंघरू के साथ वह दिल को बहुत भाता है। ऐसा लगता है कि स्वर्ग में इन्द्र की सभा में गायन-वादन हो रहा हो। यह अहसास बहुत ही अलग है। अगले गीत में “श्यामल श्यामला वरण कोमल-कोमल चरण…” गीत देखने में बहुत हास्यप्रद लगता है, पर बोल बहुत साहित्यिक है। “तीखे-तीखे नयन” बहुत ही सफलतम गीत है। अगले गीत के बोल “तू छुपी है कहाँ, मैं तड़पता यहाँ…” में संगीत इतना बढ़िया था कि सुनते ही कानों को आंनद की अनुभूति होती है। मन्ना डे, आशा भोसले, महेन्द्र कपूर की आवाज़ में सभी गाने मन को तृप्त कर देते हैं। “तू छुपी है कहाँ” गाने में नायिका-नायक का दर्द कैसा होता है, उसे परदे पर देखते हैं तो बहुत अच्छा महसूस होता है। इस गीत में घंटों की मधुर ध्वनि का चित्र व नृत्य करती अभिनेत्री ने अपने अभिनय में पूरा न्याय किया है।
अगला गाना “ना राजा रहेगा, ना यह कहानी रहेगी… ये माटी सभी की कहानी कहेगी” देशभक्ति पूर्ण यह गीत देशभक्तों के लिए इतना अच्छा प्रयास था। उस जमाने में इतना बोलना बहुत बड़ी बात होती थी। स्वतंत्रता आंदोलन व अंग्रेजों की गुलामी पर जो कटाक्ष किया गया था, वह बहुत बढ़िया बना।
संध्या व वी. शांताराम ने इस फिल्म में बहुत मेहनत की थी। तभी यह महान कृतियों में आज भी हमें याद आ जाती है।
गीत “तुम पश्चिम हो, हम पूरब हैं…” भी राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत गीत था। हिन्दुस्तानियों की सामाजिक व धार्मिकता की बात इस फिल्म ‘नवरंग’ में कल भी देखी गई थी और आज भी इस फिल्म को देखें तो हर एक पक्ष के साथ गीत-संगीत सबसे ज्यादा मजबूती प्रदान करता है। फिल्म पूरी तरह सतरंगी सुरों में शानदार है। संगीत की इस महफ़िल में इस फिल्म का हर एक पहलू कल भी लाज़वाब था, आज भी है और कल भी रहेगा।