पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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भारत ऐसा देश है, जहाँ हर कुछ किलोमीटर के बाद भाषा और बोली बदल जाती है। यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषाई विविधता का प्रमाण है। बहुत पुरानी कहावत है-
“कोस कोस पर पानी बदले, पाँच कोस पर बानी।”
हिंदी हमारे स्वाभिमान और गर्व की भाषा है। यह पूरे विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में तीसरी भाषा है। विश्व की प्राचीन, सरल, समृद्ध भाषा होने के साथ साथ यह हमारी राष्ट्र भाषा भी है। हिंदी हमें दुनियाभर में पहचान और सम्मान दिलाती है।
१४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एकमत से स्वीकार किया, कि हिंदी की खड़ी बोली ही हमारी राष्ट्र भाषा होगी। हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने के राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (वर्धा) के अनुरोध पर से पूरे देश में १४ सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाने का निश्चय लिया गया।
धीरे-धीरे हिंदी का प्रचलन बढता गया। अब हमारी हिंदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत पसंद की जाती है। मेरे विचार से हिंदी हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों को दर्शाती है। यही वजह है, कि वह विश्व में लोकप्रिय है। आज विश्व के हर कोने से हिंदी प्रेमी हमारे देश की ओर रुख कर रहे हैं। हम सबको अपनी हिंदी पर गर्व के साथ सम्मान भी करना आना चाहिए।
हिंदी पूरे भारत को एकसूत्र में बाँधने का काम करती है। काश्मीर से कन्याकुमारी तक पढ़े-लिखे और अशिक्षित लोग हिंदी भाषा को आसानी से बोल और समझ लेते हैं। यही इस भाषा की पहचान भी है।
पहले जब अँग्रेजी का ज्यादा चलन नहीं था, तब हिंदी ही भारतवासियों या बाहर रहने वाले लोगों के लिए सम्मानीय हुआ करती थी, लेकिन पाश्चात्य प्रभाव के कारण इंग्लिश ने भारत की जमीन पर जड़ें जमा ली है। यही कारण है, कि हमें अपनी राष्ट्र भाषा को एक दिवस की तरह मनाना पड़ता है।
आजकल हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। हिंदी बोलने और जानने वाले को अनपढ़, गँवार और तुच्छ नजरिए से देखा जाता है। यह कतई सही नहीं है, परंतु आज की सच्चाई यही है। हम हमारे देश में ही अँग्रेजी के गुलाम बन बैठे हैं और जो मान-सम्मान हमें अपनी राष्ट्रभाषा को देना चाहिए, वह नहीं दे रहे हैं। जब हम किसी बड़े होटल या बिजनेस क्लास के लोगों के सामने हिंदी में गर्व से बात करते हैं, तो दरअसल उन लोगों की नजर में हम जाहिल-गँवार समझे जाते हैं। घर में बच्चे जब मेहमानों के सामने इंग्लिश में कविता सुनाते हैं तो हम गर्व महसूस कर रहे होते हैं। यही कारण है कि लोग हिंदी बोलने में संकोच और इंग्लिश में बोलने की कोशिश करते हैं।
आज हमारे देश में अँग्रेजी विद्यालयों का बोल-बाला है और वहाँ अँग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाता है, लेकिन हिंदी की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया जाता है। लोगों के मन में यह धारणा हावी है, कि यदि हिंदी माध्यम से पढ़ेंगें और इंग्लिश नहीं आएगी तो नौकरी नहीं मिलेगी, जबकि ऐसा सोचना उचित नहीं है।
◾स्वीकार्यता विश्व में-
१९वीं और २०वीं शताब्दी में भारतीय मजदूरों और व्यापारियों ने विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपनी संस्कृति और भाषा को ले जाकर हिंदी को जीवित रखा। मॉरीशस और फिजी में हिंदी को भारतीय प्रवासियों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान बना कर रखा। इसके अतिरिक्त बॉलीवुड ने हिंदी को वैश्विक मंच पर लोकप्रिय बनाने में अहम् भूमिका निभाई है। फिजी में ३० फीसदी, सूरीनाम में २५ फीसदी, नेपाल में बोलने वाली जनसंख्या लगभग ८० लाख (दूसरी भाषा के रूप में ) को हिंदी को शालाओं में दूसरी भाषा की तरह पढ़ाया जाता है ।
◾अमेरिका में १० लाख प्रवासी और शिक्षार्थी-
हिंदी केवल संवाद का साधन नहीं है, वरन् एक ऐसी धरोहर है जो लोगों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है। विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजनों और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को बढ़ावा देने के प्रयासों ने इसकी वैश्विक पहचान को और मजबूत किया है।
कोई भी व्यक्ति यदि किसी भी विदेशी भाषा में पारंगत है, तो उसे दुनिया में ज्यादा ऊँचाई पर चढ़ने की बुलंदियाँ नजर आने लगती है, पर ये कतई सही नहीं है। हमें अपनी हिंदी को कम नहीं समझना चाहिए।
हिंदी दिवस केवल एक उत्सव नहीं है, वरन् संकल्प है। अपनी भाषा को संरक्षित करना, बढ़ावा देना और विश्व पटल पर गौरवान्वित करना होगा। हिंदी हमारी पहचान और हमारे भविष्य का हिस्सा है। हम सब हिंदी भाषा को अपनी गौरवपूर्ण पहचान के रूप में अपनाएं और उसे नए आयामों तक पहुँचाएं। हमें गर्व है कि हम हिंदी भाषी हैं और हमें संकल्प लेना होगा कि हम हिंदी का प्रचार-प्रसार करेंगें।