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हमारा ज़माना

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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“देखो नई बहू, छोटे जेठ जी तुम्हारे लिए कितना सारा श्रृंगार का सामान लाएं हैं।” सासू जी ने अपने कमरे से आवाज़ लगाई।
मैं और छोटी जेठानी झट से सासू माँ के कमरे में गई।
जेठ जी ने सासू जी के सामने ढेर सारा सामान फैला रखा था… चमचमाती चूड़ियाँ, बिंदिया के कई पत्ते, नेल पॉलिश और जाने क्या-क्या…!
जेठानी ने आधा सामान खुद रख लिया और आधा मुझे दे दिया। मैं अपनी जरूरत का सामान पाकर बहुत प्रसन्न हो गई।
हालांकि, थोड़े गुस्सैल होकर भी ये जेठ-जेठानी के प्रति मन श्रद्धा से भर उठा। २ वर्ष बाद मेरी बेटी ने जन्म लिया। बहुत सुंदर और चंचल बेटी ने घर के सभी सदस्यों के दिल में अपने लिए अथाह प्रेम संजो लिया था।
जेठ जी घर में घुसते ही बेटी को गोद में उठा लेते… १-१ घंटे तक उसके साथ खेलते… लाड़ करते, तभी खाना खाते। धीरे-धीरे मैंने देखा, वो मेरी ३ माह की बच्ची को मार-मार के, कभी चिकोटी काट के खिलाते। नन्हीं-सी बच्ची बुरी तरह से रोने लगती… यह देख कर मेरी जान हलक में आ गई। ये प्यार करने का कौन-सा तरीका है…??
मैंने अपनी सासू माँ से शिकायत की। वो एकदम घबरा कर बोली, “एक शब्द भी न कहना। भूलकर भी कुछ कहा तो वो घर सिर पर उठा लेंगे। तुम उनका गुस्सा जानती नहीं हो!”
एक-एक कर फिर सारे घर के लोगों ने यही कहा कि वो ऐसे ही सबके बच्चों को प्यार करते हैं। मैं अवाक सबका मुँह तकने लगी।
अब जेठ जी के घर आने से मुझे डर लगता। जब वो मेरी बेटी के गालों पर लगातार चपत बरसाते और बेटी चीख-चीख कर रोती तो मैं मजबूर-सी अपने कमरे में जाकर रोने लगती। मुझसे देखा नहीं जाता बेटी का यूँ बिलख-बिलखकर रोना। आज बरसों बाद मैंने जेठ जी को लाड़ भरे स्वर में अपने १ वर्ष के नाती से यह कहते सुना, “बेटा चीखो मत… तुम्हारी आवाज़ खराब हो जाएगी।”
हमारा जमाना मेरी आँखों के सामने घूम पड़ा।